मेला अरमानों का गज़ब ही था..ना थे सजना ना ही सजनी..दिलों की दूरियां बहुत दूर हो कर भी बहुत ही
पास थी..उस के प्यार की खुशबू उस के पास थी और उस के प्यार से उस का दिल महक रहा था इतना...
लब जैसे ही मुस्कुराए,एक कशिश उभरी और वो धरा के उस पार इस कशिश पे मुस्कुरा दिया...फ़रिश्ते
देने लगे दुआ जैसे और बेनाम से रिश्ते,रंगो के इंदरधनुष से खिल उठे जैसे..अब प्यार के दिन किस ने
जाने और माने...एक था दिया तो दूजी बाती पर यह बात किस को समझ आती..