Wednesday 3 February 2021

 इस पार या फिर उस पार...कुछ बिखरे तो कुछ टूटे अहसास...फूल ही फूल हो चारों तरफ और कांटा 


एक भी ना हो..यह मुनासिब तो नहीं...संभल संभल के चल कि ज़िंदगी हज़ारो काँटों से घिरी इक फूल 


ही तो है...एक मुस्कराहट पाने के लिए,कितने कांटे चुभते है तभी तो  कही जा कर होठों पे कुछ गुलाब 


खिलते है...मशक्क्त जिस्म की हो या रूह के ताने-बाने की..ख़ुशी तो सही वक़्त पे ही मिलती है...इस पार 


ना रह ना उस पार कि यह ज़िंदगी तो तेरी-मेरी इक कहानी ही तो है...मुस्कुरा इसी पल मे,कल की किस 


ने देखी है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...