देह थी चन्दन सी और मन सोने सा...दौलत पास थी इतनी और दुःखो का कोई मेला भी ना था...दिल
भी मिले और प्रेम के धागे भी..फिर ऐसा क्या हुआ कि मिलन हो ना सका...रूहों के महीन धागे भी थे
मजबूत इतने कि जहां भी कुछ कर ना सका...दुल्हन के लिबास मे वो मेरी होगी,यह सोच के वो सांतवे
आसमां पे था..तक़दीर ने क्या फैसला दिया ऐसा...जीवन के तार टूट गए और दुल्हन के ख़्वाब सारे टूट
गए...वो सांतवे आसमां से सीधा गिरा धरती पे और प्राण उस के अपनी दुल्हन के साथ निकल गए...