सुबह के प्यारे आँचल से निकल के,यह शुभ दोपहरी आ गई...किस ने कहा कि ज़िंदगी बुझने के कगार
पे आ गई...सुबह जब सुहावनी मिली तो दोपहर का तेज दिल को ख़ुशी के हिलोरों मे भिगो-भिगो गया...
शाम-संध्या तो यक़ीनन और भी खूबसूरत होगी..जब इबादत के दीए जले गे हर तरफ..चाहे वो मंदिर
हो या मस्जिद या वाहेगुरु का धाम...दिल का सकून पाना है तो बार-बार दौलत ना गिन...गिनना है तो
दीए इबादत के गिन..होगा जब दिल रौशन तो ख़ुशी खुद ही तेरा दर ढूंढ ले गी...यकीन बस उसी पे कर..