नसीहतें देने वाले हर मोड़ पे मिलते रहें...साथ हमारे चलना किसी को ना आया...हम ने ज़िंदगी को अपने
माँ-बाबा के संस्कारों के सहारे जिया और लोग मक्खन-बाज़ी से बाज़ ना आए..सरल सहज होना कोई भी
कठिन ना था,हमारे लिए..ना कोई तकलीफ का सौदा था यह हमारे लिए...उन तमाम वचनों के साथ रहना
कोई मुश्किल ना था..पर दुनियां वालों की यह मक्खन-बाज़ी हम को रास ना आई..मतलब के यह सब
रिश्ते कभी हम को रास नहीं आए..दौलत-ऐशो-आराम को बार-बार ठुकराते आए..बाबा मेरे सच ही तो
कहते रहें,'' तेरे नसीब को तुझ को मिल ही जाए गा,दिल को हमेशा साफ़ रखना,यही साफ़-पन तुझे
इज़्ज़त दिलाए गा''...हां,बाबा तुम सही हो..बहुत सुखी और सकून से जीते है..बस तुम्हारी याद जब भी
आती है बहुत तो गरीबों के दुखों से मिल आते है..