कायनात का भी तब तक नाम ना था..इस पृथ्वी पे कोई और भी ना था...बस ऊपर वाले ने नाम तेरा,मेरे
नाम के साथ लिखा पर अफ़सोस,हाथ की लकीरों मे साथ तेरा ना लिखा..हम धरा पे आए सिर्फ तेरे लिए..
तेरी तलाश मे भटकते रहे...सदियों तक भटक-भटक कर दर्द से बेहाल हो गए...ढूंढ़ते कैसे कि तेरे साथ
तो तेरे अपने हो गए..और हम फिर अकेले ही रह गए..कितनी सादिया और आए गी,कितनी बार जन्म
ले गे...पूछते है उस कायनात से,क्या बिगाड़ा था मैंने तेरा,जो नाम तो लिखा उस का मेरे नाम के साथ..
पर हाथ की लकीरो को खाली क्यों छोड़ा...