कभी फासला बढ़ा दिया तो कभी फासला ही मिटा दिया...कभी गुस्से की आग मे जल कर,खुद को
बरबाद कर लिया...यह तो खेल है सब तक़दीरों के..खामखा ना उलझ इन से...सकून और ख़ुशी की
कीमत क्या है ? सकून और सुख की उम्र भी क्या है ? ज़िंदगी सिर्फ कुछ लम्हे देती है सकून-ख़ुशी
के,बाकी तो सारे दिन तकलीफ़ों की भेंट चढ़ जाते है...कभी खुद से भी प्यार कर के देख जरा,यह
ज़िंदगी तेरी हंसी और मुस्कराहट से हार कर...तुझे सकून-ख़ुशी देने पे मजबूर हो जाए गी....सादा सी
दाल-रोटी भी चेहरे पे गज़ब का नूर लाए गी...