बोलने की क्या जरुरत है..प्रेम सिर्फ ख़ामोशी की बात सुनता है..शब्दों के ज़ाल मे क्या उलझाए तुझे
कि शब्दों की बात भी तुम कब सुनते हो...शब्द और ख़ामोशी दोनों है प्यार के मखमली डिब्बे मे और
प्रेम राजसी रंग की सुराही मे कैद है...जज्बातों की किताब दिल के पन्नों पे लिखते रहते है...स्याही कभी
कम ना पड़ जाए इसलिए तेरी यादों को साथ-साथ रखते है...यह निगोड़ी पायल बहुत गुस्ताखियाँ करती
है..यह भी तेरी तरह दीवानी पागल है..मेरी बात यह भी कहा सुनती है..