ढाई अक्षर प्रेम के और दुनियाँ रंगो से भर गई..पर यह क्या हुआ..उस के प्रेम के गाज़ गिर गई..जो उस
का ना हुआ तो और किस का होगा...वो उस को मान सजना,उस को प्रेम-बेला मे समर्पित हो गई...और
उस ने झूठे वादों से उस को अपना बना लिया..प्यार के अनमोल पिंजरे मे वो ढली, उस के असीम प्रेम
मे ढली....अफ़सोस..पिंजरा खोला उस ने और प्रेम को उड़ा दिया..यह कह कर ''प्रेम ही तो था ''....क्या
प्रेम ऐसा भी होता है ???????