Tuesday 9 February 2021

 ढाई अक्षर प्रेम के और दुनियाँ रंगो से भर गई..पर यह क्या हुआ..उस के प्रेम के गाज़ गिर गई..जो उस 


का ना हुआ तो और किस का होगा...वो उस को मान सजना,उस को प्रेम-बेला मे समर्पित हो गई...और 


उस ने झूठे वादों से उस को अपना बना लिया..प्यार के अनमोल पिंजरे मे वो ढली, उस के असीम प्रेम 


मे ढली....अफ़सोस..पिंजरा खोला उस ने और प्रेम को उड़ा दिया..यह कह कर ''प्रेम ही तो था ''....क्या 


प्रेम ऐसा भी होता है ???????

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...