यह कागज़ कलम और दवात...किस ने किस को लिखा...कागज़ की अहमियत भी है तो कलम भी किसी
से कम ना है..दवात की स्याही ना होती तो क्या होता...सब इतरा दिए अपनी अपनी अहमियत पे...दुलारा
सभी को बेहद प्यार से और पुकारा अपना हमराज़ सभी को...पास बुलाया सब को और पूछा बेहद प्यार
से '' गर हम कुछ लिखते ही नहीं तो आप सब क्या करते ?''..अहंकार किस बात का है...हम आप से जुड़े
तो आप सब हम से जुड़े तो '' सरगोशियां'' इक प्रेम ग्रन्थ बन गई..लोगों ने पढ़े लफ्ज़ और प्रेम ग्रन्थ की
महिमा सभी को अज़ीज़ हो गई...