तेरे साथ गुजारा नहीं मेरा...दौलत की छोटी सी चादर मे जिऊ कैसे संग तेरे...क्या सोचा था और क्या
मिला..सपनो का घरोंदा मेरा तूने तोड़ा..ऐशो-आराम की ज़िंदगी की तमन्ना मेरी भी तो है...इक बड़ा सा
घर और शाही ठाठ,यह मेरा सपना तू पूरा भी ना कर पाया..रोज़ की चिक-चिक और ज़िंदगी नरक बन
गई...बिखरे रिश्ते और इसी दरमियान प्यार तो कही दूर बहुत दूर चला गया...तक़दीर को दोष देना और
घुट घुट के जीना........'' यह प्यार हो ही नहीं सकता..जहां दौलत-आराम का पहरा हो और प्यार पैसो
से मिलता हो..यक़ीनन,यह प्यार नहीं है...नहीं है...नहीं है''....