कभी जिया है इस ज़िंदगी को आप ने अपने लिए ...कभी जिया है इस ज़िंदगी को दूजों के लिए...वही
रोज़-रोज़ का रोना,आज यह दुःख है तो कल कोई और रोना...खुद ही हारे है आप बार-बार पर इस
ज़िंदगी ने अपना बिंदासपन नहीं छोड़ा...कभी इस ज़िंदगी को हमारी नज़र से तो देखिए जरा..दुखों के
मेले मे भी,छोटी-छोटी खुशियाँ हम ढूंढ लेते है..और आप,सुखों की घड़ियो मे भी,मिले पुराने दर्द को ही
याद करते रहते है...जीने का सलीका जो आप सीख जाए गे,उसी दिन से खुद से ही मुहब्बत कर पाए गे..