कोई ख़ुशी दस्तक देने नहीं आई दरवाजे पे मेरे..फिर भी क्यों दिल का आंगन खुशगवार सा है...क्या किसी
ने बहुत दूर से मेरा नाम ले के मुझ को प्यार से पुकारा है...क्या जाने इस बात को,हम को बस पता इतना
है कि दिल का यह आंगन ख़ुशी के सागर से तरबतर है..गुनगुना रहे है दिल ही दिल कि दिल का आंगन
ही तो आज सब कुछ हमारा है...आईना देखा तो चेहरा गुलाल से गुलाब है...आँखों के किनारे कजरारे है..
पलके बेवजह लाज से भारी है...क्या कमाल है यह दिल का आंगन भी..बिन ख़ुशी के इतना खुश है..
ख़ुशी कोई मिली तो क्या होगा....