Saturday 29 May 2021

 कुछ कही तो कुछ अनकही बातें...

कुछ मीठी तो कुछ खट्टी बातें...

पलकों का झुक जाना तो कभी पलटवार कर देना...

मुस्कुरा देना तो कभी मुस्कान दबा लेना....

कभी अल्हड़पन तो कभी यू ही बड़प्पन दिखा देना...

कभी रौशनी बन जाना तो कभी अंधेरो मे ग़ुम हो जाना....

कभी इक पहेली तो कभी खुली किताब हो जाना...

तौबा तौबा,इतना इतराना तो कभी हुस्न को भुला देना...

दुनिया दे तवज्जो तो भी बेपरवाह हो जाना...

खिलखिला के जो हंस दे तो नूर चाँद तक का खाक हो जाना...

फरिश्ता भी नहीं,ज़न्नत की हूर भी तो नहीं...

 बहती है कभी नदिया की धारा की तरह,कभी हो जाए शांत समंदर के रुके नीर के जैसे...

खुशबू के ढेरे साथ लिए,हर किसी को जीवन का अहसास दिए....

एक पहेली भी है तो कभी एक सहेली भी है......

 कोई दिन ऐसा ना रहा जब इबादत या सज़दे के लिए,यह सर नहीं झुका...यह बात और है,कभी इन 


आँखों से सैलाब बहा तो कभी चुपके से अपने खुदा को,अपनी रूह का दर्द बयां कर दिया...यह नहीं 


कि उस ने हम को हमेशा दर्द ही दिया...कभी कुछ दी ख़ुशी पर आँचल के भरने से पहले ही उस ख़ुशी 


को हमी से जुदा कर दिया...सवाल उठाया बेहद अदब से और भरी आँखों से, तो उस ने हम से इतना 


कहा..'' वक़्त के हाथ मे सब की तक़दीर है..कभी दर्द है तो कभी ख़ुशी का मेला भी है..सब्र रख और 


कर इंतज़ार वक़्त का...तक़दीर का खेल कर्मो की रेखा का संगी-साथी है''...

Wednesday 19 May 2021

 राज़ है गहरा इन आँखों मे..

ना बताए गे..

लबों पे हंसी है इतनी गहरी..

यह ना बताए गे..

जीते है बिंदास बिन वजह..

कुछ ना बताए गे..

मुश्किलें बहुत है,दुःख भी...

मुस्कुराए तब भी...

दुनियाँ को सिखा रहे है जीना...

अँधेरा होगा खत्म...

कमजोरों को दे रहे है हंसी...

यही तो ज़िंदगी का नाम है...

रोटी मिल रही है आधी,कोई बात नहीं...

कल पकवान भी तो खाए गे...

जंग हौसले से लड़..

ज़िद के आगे अँधेरा भी टूट जाए गा...

रोनी सूरत ना बना..

जीवन व्यर्थ हो जाए गा...

अपनी हंसी का राज़ क्यों बताए गे...

बस अपनी हंसी से,जीवन दूसरों को दे रहे है...

आज इतना ही बताए गे....



 हर रोज़ इक नया सवाल पूछ रही है यह ज़िंदगी...जिस सवाल का जवाब दे चुके है,उसी से जुड़े और भी 


कितने सवाल पूछ रही है यह ज़िंदगी...क्यों हमारा मनोबल गिराने पे तुली है तू अरे ज़िंदगी...ईश्वर ने भरा 


 है ऐसी ताकत से कि उस के आगे तू कोई और सवाल दोहरा ना सके गी ऐ ज़िंदगी...इंसान कमजोर तो 


तभी होता है जब वो खुद को हराने की हार स्वीकार कर बैठे...मुस्कुरा ज़िंदगी संग हमारे कि ज़िद तो 


हमारी भी है कि आखिरी सांस तक जीते गे...आ ना,दोस्ती का रिश्ता रख हम से...फिर ना कहना,सवाल 


क्या पूछे तुझ से...मुस्कुरा संग संग हमारे.............

 हर रोज़ कुछ ना कुछ सिखा रही है यह ज़िंदगी...पर मुझे जीना,हर हाल मे बिंदास..अनोखा पाठ पढ़ा रही 


है यह ज़िंदगी...कुछ,कुछ भी नहीं सीख रहे तो कुछ इस को खुदा की मर्ज़ी मान ख़ुशी और संतोष से जी 


रहे...कहर से सब ने कुछ ना कुछ तो सीखा होगा,मगर जो हमेशा से रोते आए है..खुद की तक़दीर को 


कोसते आए है,उन को कुछ भी समझाना है बहुत मुश्किल...धूप-छाँव है यह ज़िंदगी..सुख के पल देती 


है थोड़े से पर तकलीफ़ की घड़ियां बहुत लम्बी होती है...क्या हुआ जो लम्बी है,यह दिन कभी तो उजाले 


मे बदले गे...हर दिन इक आस है और हर रात गुजरते तूफान की रात है....

Sunday 16 May 2021

 सोचिए तो जरा..क्या कल का सवेरा आज जैसा ही होगा ? यह दर्द,यह अपनों से बिछड़ने का गम...क्या 


दिल मे सदा होगा ? क्या रोजी-रोटी कमाने के लिए,कितने दिन और भटकना होगा ? साँसे कभी रूकती 


है तो कभी चलती है,कब इस दर्द से निजात पाए गे ? सब्र रख अरे इंसान,कुछ दिन कम मे जीना होगा तो 


क्या प्रलय आ जाए गी ? कुछ दिन तंगी संग भी जी लो गे तो क्या दुनियाँ ख़ाक तो ना हो जाए गी ? उसी 


को गुजारिश कर,वो हर सच्ची प्रार्थना जो दिल से निकले,सुनता है..यह दावा मेरा नहीं,जो भी खुद को 


समर्पित कर दे गा उस को तन-मन से..वो कल का खूबसूरत नज़ारा यक़ीनन देख पाए गा....बैर-द्वेष 


छोड़ दे अब तो,हाथ सच्चाई से जोड़ दे..........अब तो....

 दर्द और तकलीफ़ के आंसू खुद मे लिए,क्यों आज हर इंसान है...कभी थी ना ख़ुशी,इस एहसास से क्यों 


अनजान है..कुदरत के न्याय को समझने के लिए,तेरे पास बुद्धि भी कहां है..इतने कष्ट मे है फिर भी खुद 


को ताकतवर समझ रहा है..रोज़ एक ही सवाल दोहराते है उस मालिक से..'' यह इंसान गर सच मे इतना 


शक्तिशाली है तो हवा मे उड़ते कण को,रोक क्यों नहीं पाया..अपनी दौलत की ताकत से इस को भगा 


क्यों नहीं पाया ''...ईश्वर,तेरी माया अपरम्पार...जिस पल तेरी महिमा जगत कल्याण के लिए हो जाए गी,


उसी पल यह दुनियां रोग-मुक्त हो जाए गी...दया करो,दया-निधान...

Sunday 9 May 2021

 यह कमाल तो तेरी परवरिश का है माँ,जो ज़िंदगी की हर जंग को बेखौफ लड़ते आए है...कितनी गाज 


गिरती रही खुद के दिल के आशियाने पे,पर मज़ाल है जो कभी थक जाए...''साथ की उम्मीद मत रखना 


लाडो कि कदम तेरे कमजोर पड़ जाए गे..चोट लगे तो खुद ही संभल जाना,तरस लेना तेरे खून मे नहीं 


डाला मैंने''...माँ के शब्द और पिता की मजबूती ने किसी भी हालात मे डरने नहीं दिया...जो डर गया 


वो जंग ज़िंदगी की कब जीत पाता है...हर दिन तो तेरा ही है माँ..बस पन्नों पे लिख कर तेरा नाम,इस 


जहाँ को माँ के संस्कारो को समझाया है...मजबूत मुझे इतना कर दिया कि अब किसी भी अँधेरे से 


डर लगता नहीं...माँ तेरी परवरिश का क़र्ज़ इस रूह से उतरता ही नहीं....

 रास्ते बहुत कठिन है और अँधेरा भी है गहरा...पर  अटूट विश्वास के आगे,उजाला कब रुक पाए गा...


किसी ताकत ने आज तक रोका क्या,सूरज का उगना...किस ने रोका,चाँद को ढलने से रुकना...रोनी 


सूरत क्यों बनाई है...क्या तुझे कुदरत की महिमा अभी तक समझ ना आई है...इन साँसों का चलना,इन 


कदमों का अभी भी ना रुकना...क्या यह तेरी कोशिश है ? शुक्राना कर उस मालिक का...जिस ने दिया 


है तकलीफ को,वो इस से निज़ात देना भी जानता है... करना है तो सिर्फ हिम्मत रख ले...वक़्त का बस 


इतना ही तो तकाज़ा है...


Saturday 8 May 2021

 ''माँ ''.....एक और ''माँ ''....क्या फर्क रहा इन दोनों माओं का,मेरे जीवन मे...एक ने सिखाया मीठी बोली 


का महत्त्व और किसी भी बड़े के आगे खामोश रहने का वो महामंत्र....माँ का कहना,''मैं रहू या ना रहू,


मेरे नाम को दाग़ मत लगाना...ख़ामोशी का लबादा ओढ़े सब की सुन लेना...एक दिन सब तुझे मान 


सम्मान से लाद दे गे ''...वो मेरी दूजी माँ,गहरी डांट से डांट देती कि ख़ामोशी तो तोड़...पर माँ को दिया 


वो वादा कैसे तोड़ देती...सब सीखा,जो दूजी माँ ने सिखाया...आँखों का पानी खुद अपनी आँखों से भी 


छिपाया...पायल की छन छन से और सेवा के धागो से माँ का दिल मेरे लिए,हज़ारो दुआओ से भर 


आया...आज खुद भी माँ हू मगर संस्कारो के मोल,ज़मीर के साथ साथ चल रहे है....दोस्तों,माँ सिर्फ माँ 


होती है..वो कभी बुरी नहीं होती...नाराज़ हो तो भी औलाद के लिए दुआ मांगती है..खुश हो तो भी 


दुआ का सैलाब बहाती है...भगवान् से पल पल औलाद की सलामती मांगती है...माँ दुनियाँ से जा कर 


भी कही नहीं जाती...उस के दिए संस्कारो को ज़िंदा रखिए..वो हमेशा हमारे साथ रहे गी.....


Friday 7 May 2021

 साँसों को रखना है गर ज़िंदा तो खुद के हौसले को ज़िंदा रख...किसी ने दुनियाँ को छोड़ा तो तू क्यों डर 


गया...यह कुदरत है दोस्तों,वो कोई भेदभाव किसी मे नहीं करती...जिस की बारी जब आई है,वो उस 


को बिना किसी पक्षपात के ले जाए गी...वो तेरा अपना था,पर अब वो एक सपना भर है...अकेले आए थे,


अकेले ही जाना है...फिर अकेले जीना क्यों ना सीख ले...जो जब तक साथ है,उन को दुआ के सैलाब मे 


नहला दे...जिस को जानता ही नहीं,दुआ का सैलाब उस के लिए भी बहा दे...यही तो तेरी परीक्षा है,जिस 


को आज के माहौल मे निभा देने का जज्बा बना ले...

 साथ हमेशा रहने के लिए,कौन इस दुनियाँ मे अब तक आया है...दूर तक साथ देने का वादा कर के भी,


कौन हमेशा साथ चल पाया है...अकेले चलने का हौसला बना कर चल...सब को दुआ का तोहफा जितना 


दे सकता है,देता चल...फिर देख,हर तकलीफ,हर परेशानी कैसे धुआँ बन उड़ जाए गी...हिम्मत टूटी तो 


सब साथ होंगे तो भी यह ज़िंदगी किसी काम की ना रह जाये गी....मुस्कुराए गे तकलीफ मे तो हज़ारो 


साथ खुद ही चल कर आ जाये गे...रोनी सूरत देख हमेशा,सब साथ छोड़ जाये गे...यही दस्तूर कुदरत का 


भी है..जो डर गया,हार गया वो कुदरत की नियामतों से भी हार गया...

 देह तो यह माटी की है पर रफ़्तार तो साँसों की इस मे बसती है...दिल जो धड़क रहा है अभी तक,धक् 


 धक् धड़कनों की इन मे कायम है...चल रहे है रोज़ इस ज़िंदगानी की डगर पे,उस ने क़दमों को ताकत 


की दुआ अभी बख़्शी है...हाथ तो रोज़ उठते है सब के लिए दुआ देने के लिए ,परवरदिगार का यह नियम 


सभी के लिए ही बराबर है...इस हाथ दे और उस हाथ ले,दुआ की रफ़्तार बस इतना ही कहती है..साँसे 


सभी की सलामत रहे..तुम दुआ करो हमारे लिए और हम दुआ करे सब के लिए...

Thursday 6 May 2021

 किस ने कहा कि गाड़ियां सिर्फ ज़मी पे चलती है...जीवन भी तो गाड़ी है ऐसी,कौन कब किस वक़्त इस 


गाड़ी से उतर जाए गा...आज जिस से बात की,वो कल अपने स्टेशन पे मिले गा या नहीं मिले गा...वो 


कब किस से सीट खाली करवा दे,उस का हुक्म हर पल सर-आँखों पे है...मेरे दाता,तेरी रज़ा जिस मे है 


मेरी भी उसी मे है...पर जब तक आखिरी सांस पे रहू,अपने असूलों पे ही जिऊ...आत्म-सम्मान और पिता 


के संस्कारो को दूर दूर तक बाँट जाऊ...कल जब सांस निकले तो कोई भी मलाल ना हो..माँ-बाबा से 


फक्र से सर उठा कर ही मिलु...किसी का बुरा सोचा नहीं तो मौत के डर से भी क्यों डरु....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...