Saturday 8 May 2021

 ''माँ ''.....एक और ''माँ ''....क्या फर्क रहा इन दोनों माओं का,मेरे जीवन मे...एक ने सिखाया मीठी बोली 


का महत्त्व और किसी भी बड़े के आगे खामोश रहने का वो महामंत्र....माँ का कहना,''मैं रहू या ना रहू,


मेरे नाम को दाग़ मत लगाना...ख़ामोशी का लबादा ओढ़े सब की सुन लेना...एक दिन सब तुझे मान 


सम्मान से लाद दे गे ''...वो मेरी दूजी माँ,गहरी डांट से डांट देती कि ख़ामोशी तो तोड़...पर माँ को दिया 


वो वादा कैसे तोड़ देती...सब सीखा,जो दूजी माँ ने सिखाया...आँखों का पानी खुद अपनी आँखों से भी 


छिपाया...पायल की छन छन से और सेवा के धागो से माँ का दिल मेरे लिए,हज़ारो दुआओ से भर 


आया...आज खुद भी माँ हू मगर संस्कारो के मोल,ज़मीर के साथ साथ चल रहे है....दोस्तों,माँ सिर्फ माँ 


होती है..वो कभी बुरी नहीं होती...नाराज़ हो तो भी औलाद के लिए दुआ मांगती है..खुश हो तो भी 


दुआ का सैलाब बहाती है...भगवान् से पल पल औलाद की सलामती मांगती है...माँ दुनियाँ से जा कर 


भी कही नहीं जाती...उस के दिए संस्कारो को ज़िंदा रखिए..वो हमेशा हमारे साथ रहे गी.....


दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...