हर रोज़ कुछ ना कुछ सिखा रही है यह ज़िंदगी...पर मुझे जीना,हर हाल मे बिंदास..अनोखा पाठ पढ़ा रही
है यह ज़िंदगी...कुछ,कुछ भी नहीं सीख रहे तो कुछ इस को खुदा की मर्ज़ी मान ख़ुशी और संतोष से जी
रहे...कहर से सब ने कुछ ना कुछ तो सीखा होगा,मगर जो हमेशा से रोते आए है..खुद की तक़दीर को
कोसते आए है,उन को कुछ भी समझाना है बहुत मुश्किल...धूप-छाँव है यह ज़िंदगी..सुख के पल देती
है थोड़े से पर तकलीफ़ की घड़ियां बहुत लम्बी होती है...क्या हुआ जो लम्बी है,यह दिन कभी तो उजाले
मे बदले गे...हर दिन इक आस है और हर रात गुजरते तूफान की रात है....