देह तो यह माटी की है पर रफ़्तार तो साँसों की इस मे बसती है...दिल जो धड़क रहा है अभी तक,धक्
धक् धड़कनों की इन मे कायम है...चल रहे है रोज़ इस ज़िंदगानी की डगर पे,उस ने क़दमों को ताकत
की दुआ अभी बख़्शी है...हाथ तो रोज़ उठते है सब के लिए दुआ देने के लिए ,परवरदिगार का यह नियम
सभी के लिए ही बराबर है...इस हाथ दे और उस हाथ ले,दुआ की रफ़्तार बस इतना ही कहती है..साँसे
सभी की सलामत रहे..तुम दुआ करो हमारे लिए और हम दुआ करे सब के लिए...