सोचिए तो जरा..क्या कल का सवेरा आज जैसा ही होगा ? यह दर्द,यह अपनों से बिछड़ने का गम...क्या
दिल मे सदा होगा ? क्या रोजी-रोटी कमाने के लिए,कितने दिन और भटकना होगा ? साँसे कभी रूकती
है तो कभी चलती है,कब इस दर्द से निजात पाए गे ? सब्र रख अरे इंसान,कुछ दिन कम मे जीना होगा तो
क्या प्रलय आ जाए गी ? कुछ दिन तंगी संग भी जी लो गे तो क्या दुनियाँ ख़ाक तो ना हो जाए गी ? उसी
को गुजारिश कर,वो हर सच्ची प्रार्थना जो दिल से निकले,सुनता है..यह दावा मेरा नहीं,जो भी खुद को
समर्पित कर दे गा उस को तन-मन से..वो कल का खूबसूरत नज़ारा यक़ीनन देख पाए गा....बैर-द्वेष
छोड़ दे अब तो,हाथ सच्चाई से जोड़ दे..........अब तो....