किस ने कहा कि गाड़ियां सिर्फ ज़मी पे चलती है...जीवन भी तो गाड़ी है ऐसी,कौन कब किस वक़्त इस
गाड़ी से उतर जाए गा...आज जिस से बात की,वो कल अपने स्टेशन पे मिले गा या नहीं मिले गा...वो
कब किस से सीट खाली करवा दे,उस का हुक्म हर पल सर-आँखों पे है...मेरे दाता,तेरी रज़ा जिस मे है
मेरी भी उसी मे है...पर जब तक आखिरी सांस पे रहू,अपने असूलों पे ही जिऊ...आत्म-सम्मान और पिता
के संस्कारो को दूर दूर तक बाँट जाऊ...कल जब सांस निकले तो कोई भी मलाल ना हो..माँ-बाबा से
फक्र से सर उठा कर ही मिलु...किसी का बुरा सोचा नहीं तो मौत के डर से भी क्यों डरु....