दर्द और तकलीफ़ के आंसू खुद मे लिए,क्यों आज हर इंसान है...कभी थी ना ख़ुशी,इस एहसास से क्यों
अनजान है..कुदरत के न्याय को समझने के लिए,तेरे पास बुद्धि भी कहां है..इतने कष्ट मे है फिर भी खुद
को ताकतवर समझ रहा है..रोज़ एक ही सवाल दोहराते है उस मालिक से..'' यह इंसान गर सच मे इतना
शक्तिशाली है तो हवा मे उड़ते कण को,रोक क्यों नहीं पाया..अपनी दौलत की ताकत से इस को भगा
क्यों नहीं पाया ''...ईश्वर,तेरी माया अपरम्पार...जिस पल तेरी महिमा जगत कल्याण के लिए हो जाए गी,
उसी पल यह दुनियां रोग-मुक्त हो जाए गी...दया करो,दया-निधान...