Sunday 28 February 2021

 '' सरगोशियां.इक प्रेम ग्रन्थ ''...ज़ाहिर सी बात है कि यह ग्रन्थ प्रेम की तमाम भावनाओं से भरपूर ही होगा...प्रेम....एक ऐसा शब्द...प्रेम एक ऐसी भावना...जो सिर्फ इंसानो मे ही नहीं,सारे जीवों मे देखने को मिलती है...दोस्तों,बहुत बार यह ''सरगोशियां'' समाज के कितने ही अच्छे-बुरे रूप को भी उजागर करती है..जिस की जानकारी सभी को है...मेरी गुजारिश है अपने उन सब दोस्तों,शुभचिन्तकों से..जो मेरी ''सरगोशियां'' पढ़ते है...वो समाज की इन कुरीतियों से इतने प्रभावित और सवेंदनशील हो जाते है कि कुछ भी समीक्षा दे डालते है...दोस्तों,मैं एक लेखिका हू,जो हर पहलू को उजागर करती है,अपनी लेखनी मे...बहुत बार लिख चुकी हू कि इन तमाम शब्दों का ना तो किसी खास इंसान से वास्ता है और ना इस समाज मे निजी तौर पे किसी ऐसी शख्सियत को जानती हू... जानती हू,लेखक / शायर की कलम मे इतनी ताकत जरूर होनी चाहिए कि लोग उन शब्दों मे अंदर तक खो जाए..पर किसी के भी निजी जीवन से ना जोड़े...अच्छा तो लगता है जब मेरे लिखे शब्दों की गहराई आप सभी के दिलो को छू जाती है..आप सब ''सरगोशियां '' को प्यार करते है तो मेरा सर श्रद्धा से झुक जाता है,आप सभी के प्यार-सम्मान के आगे...हां,अपने माता-पिता के लिए कभी-कभी जरूर लिखती हू,जो सच मे मेरे ही जीवन से जुड़ा है..उन के सिद्धांत,उन के संस्कार ही है जो आज मुझे लेखनी की ताकत देते है..लेकिन,''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' मेरे जीवन का वो सपना,वो जनून है..जो मुझे रोज़ ही हज़ारो शब्द लिखने के लिए प्रेरित करता है...मेरे इस लेखन-जनून के साथ जुड़ने के लिए,आप सभी का बेहद बेहद शुक्रिया......आप की अपनी सी  ''शायरा ''.......

 नसीहतें देने वाले हर मोड़ पे मिलते रहें...साथ हमारे चलना किसी को ना आया...हम ने ज़िंदगी को अपने 


माँ-बाबा के संस्कारों के सहारे जिया और लोग मक्खन-बाज़ी से बाज़ ना आए..सरल सहज होना कोई भी 


कठिन ना था,हमारे लिए..ना कोई तकलीफ का सौदा था यह हमारे लिए...उन तमाम वचनों के साथ रहना 


कोई मुश्किल ना था..पर दुनियां वालों की यह मक्खन-बाज़ी हम को रास ना आई..मतलब के यह सब 


रिश्ते कभी हम को रास नहीं आए..दौलत-ऐशो-आराम को बार-बार ठुकराते आए..बाबा मेरे सच ही तो 


कहते रहें,'' तेरे नसीब को तुझ को मिल ही जाए गा,दिल को हमेशा साफ़ रखना,यही साफ़-पन तुझे 


इज़्ज़त दिलाए गा''...हां,बाबा तुम सही हो..बहुत सुखी और सकून से जीते है..बस तुम्हारी याद जब भी 


आती है बहुत तो गरीबों के दुखों से मिल आते है..

Saturday 27 February 2021

 परछाई तेरी बन के रहू..तेरी हमसफ़र बेशक रहू या न रहू..साँसों का मोल तो सिर्फ इतना है,जिऊ तो 


तेरी सलामती के लिए ही जिऊ...बेशक बहुत क़द्र ना कर मेरे मासूम जज्बातों की...बस मेरा कहना 


सिर्फ इतना ही मान,मेरे सिखाए नक़्शे-कदम पे चल...तेरी बेहतरी मुझ से जयदा और कौन जाने-समझे 


गा...तुझे दर्द कही पे हो उस से पहले दर्द मेरी रूह पे होता है...कोई एहसान नहीं किया मैंने,तेरी ही 


सलामती चाह कर...जो तेरा है वो ही तो मेरा है..और मेरा हर पल तेरे लिए हाज़िर है...

Friday 26 February 2021

 क्या कमी थी उस के प्यार मे,जो उसी के प्यार ने उस को तवायफ़ बना दिया...बेहद प्यार से जिस को 


अपनाया, उसी ने उस के प्यार का मज़ाक बना दिया...छोड़ी सारी दुनियां जिस के लिए,उसी के बेहद 


अपने ने उस को बाज़ार मे बिठा दिया..किस पे यक़ीन करती,यक़ीन वाले ने ही उस की अस्मत को दांव 


पे लगा दिया..आंखे झर-झर बहते बहते सूख गई..''हां..मैं इक तवायफ़ हूँ..खुद को कचरे का सामान 


मान,वो इन घटिया मर्दो को खुद को परोसती रही ''...यह सफ़ेदपोश अंदर से कितने काले है..वो सब 


जान गई..अब किस का करे इंतेज़ार,जब उसी के अपने प्यार ने उस को कौड़ी के दाम बेच दिया...

 ना मिला प्यार ना सम्मान का इक क़तरा मिला...ज़ज़्बातो के सैलाब मे हम पूरी तरह उन के हो गए...


''हम उन के काबिल ही नहीं ''..यह जान कर जो गाज़ हम पे गिरी...बयान किस से करते...इक बार तो 


सोचा कि पूछे उन से,जब बिठाया था अपनी पलकों पे हम को तो वो कमियां नहीं देखी तुम ने...कभी 


हम को फरिश्ता कहने वाले,आज देख के हम को नज़र अपनी फेर लेते है...आईना तो आज भी हम 


से कोई शिकायत नहीं करता..जो सच दिखता है हम मे,बस वही सच दिखाता है हम को..तुम भी तो 


हमारा आईना ही तो थे,फिर कमियों का बसेरा हम मे कब से देखा तुम ने...

 सवाल तो दिल मे रौशनी होने से था मगर उन्हों ने दिल मे चिराग ही जला लिए...हम ने तो सोचा था कि 


वो बहुत समझदार है मगर उन्हों ने दिलों के मायने ही बदल दिए...क्या समझाए आप को कि दिल 


मुहब्बत मे जला नहीं करते...दिल के रौशन-दान मे दिए हमेशा इबादत के जलते है...चिराग ना जलाइए 


यह मुहब्बत को तबाह करने की निशानी है..दिया रौशन कीजिए और मुहब्बत को कामयाब कर दीजिए..


मिसाल मुहब्बत की ऐसे नहीं बना करती...जहां एक दिल दूजे के दिल से ही रौशन हो जाए,बस यह 


मुहब्बत क़ुरबान की सीढ़ी वही पे चढ़ती है...

 अभी तो सिर्फ बादलों मे बिजली चमकी है और आप डर भी गए...अभी तो सिर्फ घनघोर हुआ है आसमां 


 और आप अभी से सहम गए...जानते है यह बिजली को अभी जोरों से दहाड़ देना बाकी है और आसमां 


इस का जम के बरसना भी निश्चित है...बस,इसी तरह से यह ज़िंदगी भी तो है..जाना,सुन जरा..यह बेहद 


तकलीफ़े देती है..कभी कभी तो रुख अपना अजीब मोड़ पे आ कर रोक देती है..अब बादल खुल के 


बरसे या बिजली कड़क के गिर भी जाए..आंख का आंसू तेरा,कभी गिरने ना पाए..जब साथ है तेरे तो 


गम कैसा...हज़ारो अँधिया भी आए तो अब डर कैसा....

Tuesday 23 February 2021

 इंदरधनुष कितनी बार खिला और उतनी ही बार तेरा-मेरा प्यार खिला...कभी वो शाम बहुत खूबसूरत 


रही तो कभी वो शाम समर्पण की बेला मे ढली...मगर कोई शाम कभी ऐसी ना रही जो उलाहनों से 


भरी रही...चाँद-सितारे गवाह रहे इस शाम के और कभी हम ढले तेरे रंग मे तो कभी तुम ढले हमारे 


प्यार के  खूबसूरत मुकाम मे...मुकम्मल तुम भी हुए,मुकम्मल हम भी हुए..मगर जुदा होते वक़्त कभी 


तुम उदास हुए तो कभी हम आंसुओ से नम हुए...काश..इंदरधनुष हर पल बना रहे और तेरी-मेरी 


मुहब्बत का मिसाल बना रहे... 

 ईमानदारी और वफ़ा के सबूत  हम को दीजिए और फिर से हमारे करीब आ जाइए...मसले सारे हल हो 


जाए गे...टुकड़ों मे मत बटिये,सिर्फ हमारे और हमारे हो जाइए..मसले हल हो जाए गे...दिल और रूह 


के अपने दरवाजे मे ठीक से झांकिए,फालतू सूरतें कचरे मे फेंक दीजिए..सब मसले ही हल हो जाए गे...


सर से पांव तक सिर्फ और सिर्फ,हमारे हो जाइए...मसले सारे हल हो जाए गे...नहीं तो दूरियां बने गी 


ज़िल्लते और हम तुम हमेशा के लिए जुदा हो जाए गे...

 क्या जीना इसी का नाम है ? कुछ हुआ तो रो दिए.कुछ ना मिला तो घबरा गए..चुनौतियां देख सामने इस 


ज़िंदगी की,हौसले ही पस्त हो गए...कभी डर गए किसी के विचारों से तो गुस्से से कांप-कांप गए...कभी 


यू ही इस ज़िंदगी से बेज़ार हो गए,यह सोच कर कि कितनी लम्बी है अभी और यह ज़िंदगी...अरे पगले,


यू उदास पस्त और गुस्से से जिए गा तो यक़ीनन इस ज़िंदगी के दुखों से कभी मुक्त ना हो पाए गा..देख 


और सोच,कोई तो होगा जो तेरे लिए फिक्रमंद होगा..कोई तो होगा जो तेरे लिए कही दुआ मांग रहा 


होगा..तुझे तो शायद खबर भी न होगी,कोई दूर तुझे तेरे दुखों से निकल जाने की सच्ची इबादत मे 


लीन भी होगा...

Monday 22 February 2021

 कौन है जो छुप-छुप के रात के गहरे पहर मे हम को,हमारे पन्नों को पढ़ता है...कौन है जो रात के अंतिम 


पहर,हमारे लफ्ज़ो को चुपके से चुरा लेता है...कौन है जो देर रात,जब हमारी आंख खुले..तो कलम-स्याही 


पास रख जाता है...कौन है जो कहता है,जनून को जनून बनाए रखना..कौन है जो बार-बार याद दिलाता 


है कि आंख मूंदने से पहले,नाम अपना इतिहास बना जाना...कौन है जो प्यार से सर पे हाथ रख के कहता 


है,साथ हू ना तेरे...जानते है हम यह कौन है..मेरे बाबा के सिवा कोई और हो नहीं सकता...जिस एहसास 


दुलार के बीज बोए आप ने,वो अधूरे कैसे छोड़े गे..

 भोर की पहली किरण जो पड़ी उन के चेहरे पे..हम ने उस पहली किरण को चूम लिया..हमारा हक़ इन 


पे आप से पहले है,यह बोल कर हम ने किरण को, कल की भोर पे आने को मना किया...कैसे कहे कि 


आप तो आप है..और आप के सिवा कौन और हमारे है...तेरे कदमों की चाप सुन लेते है बहुत दूर से..


तेरी साँसों की महक पूरे दिन बांध के रखते है अपने जिस्म से...चाँद तक को हक़ नहीं देते तुझे निहार 


लेने का..तेरी ही आगोश मे सिमटे,किसी और के ख्याल को आने तक की इज़ाज़त नहीं देते इस दिल मे..

 बेहद नज़ाकत से वो बोले हम से..''ना बांध के रखिए अपने पल्लू से हम को..किसी काम के ना रह पाए 


है..दुनियाँ पुकारती है हम को आप के दीवाने के नाम से,कुछ तो रहम कर दीजिए हम पे''...दबाया पल्लू 


हम ने होठों मे अपने और मुस्कुरा दिए अदा पे इन की..वल्लाह क्या बात है,क्या हम देख रहे है उसी 


शख़्स को जो हम को देख कर मुस्कुराता तक नहीं..दिल मे छिपाए इस एहसास को,बोले उन से..''जनाब 


हम ने आप को पल्लू से नहीं अपनी रूह के तारों से बाँधा है..कह दीजिए दुनियाँ वालों से,हमारी रूह के 


दीवाने है आप..जो नशा सदियों तक ना उतरे,उस से भी जयदा नशीले है हमारे एहसास''....

 डूब कर तेरे ही प्रेम के आंगन मे..बेनाम सा रिश्ता अपने आँचल से बांध लिया...राहें तो बंद है हर और 


से मगर इन दिलों की राहें तो हर तरफ ही खुली है...दर्द देती है जब भी तन्हाई तो कोई मधुर धुन दूर 


से सुनाई देती है..खामोशियाँ बोल उठती है और उसी ख़ामोशी मे आवाज़ तेरी ही सुनाई देती है...प्रेम-राग 


ही सुन,दुनियाँ की कोई बात ना सुन..ढाप ले अपना चेहरा अपनी हथेलियों से और मुझे धीमे से सुन..गीत 


वही सुनाई दे गा तुझे जो तूने हमेशा मेरे ही साथ दोहराया है..बस,प्रेम का रंग उन्हीं सुरों मे ढला मेरा-तेरा 


अंश है...

 तूने ठीक से सुना नहीं शायद..हम ने कब से रोना-धोना छोड़ दिया...इन आँखों ने साथ दिया हमारा और 


इरादा हमारा सफल हुआ...वादा किया था तुझ से हम ने,रंग तेरे मे रंग जाए गे..पर तूने रंग मे वफ़ा ना 


घोली और हम बेवफ़ा हो ना सके...डगर एक थी,बंधन भी एक था..पर तू वादे से परे हटा...सहना इतना 


आसान ना था,आसमान भी फट सा गया...चाँद-सितारे भी रोए साथ हमारे..बादल भी गरज़ के काँप गया..


आवाज़ आई रूह से ऐसी कि आँखों का पानी ही सूख गया..चाँद-सितारे..बादल-बिजली पुराने साथी है 


मेरे...सदियों का साथ है इन का और मेरा..बदल जाना इन का काम नहीं..

  पायल अपने घुंगरू छनकाती मस्त-मस्त थी मेरे दिल की तरह...हम ने पूछा,यह तो बता..हम को ले 


कर चली कहाँ..मस्त अंदाज़ मे वो फिर छनकी..बस तू चल मेरे साथ...समंदर किनारे-किनारे अपना 


आँचल भिगो दे पूरी शिद्दत के साथ...लहरें साथ चले गी तेरे, रूप देखे गे तेरा यहाँ रुके दीवाने खास...


बात ना करना किसी से कोई,यह सब है पागल बदमाश...हँसे जब हम जोरों से,देने लगी पायल हिदायत  


बारम्बार..रोक हंसी ऐ पगली,चल रहा यहाँ मौसम बहुत ही खास...

 मिज़ाज़ मौसम का आज बहुत गर्म सा है..रेगिस्तान की रेत की तरह उड़ता-उड़ता सा है..यह क्या,देख 


हमें रेत का ग़ुबार हमी और चला आया...गुस्सा हम को भी आया...समझ गए,तेरे गर्म मिज़ाज़ का असर 


यहाँ तक भी आया..सूरज की ताप को इक हल्का सा इशारा हम ने ऐसा दिया..रेत की धूल का रुख तेरे 


ही शहर मोड़ दिया...अब बारी तेरे सुलगने और जलने की है..समझ जरा,यह मौसम और सूरज का ताप 


कभी-कभी तेरी सुन लेता है..वरना यह तो हमेशा हमारे इशारो पे ही चला करता है...

 सितारों से भरी चुनरी ओढ़े भरी रात मे जो हम निकले..चाँद के दीदार के लिए बहुत तड़पे...ज़ालिम इक 


तो यह बादलों का शोर और ऊपर से गरजती बिजली,तौबा..मेरे भगवान्...अरसे बाद निकले थे आज इस 


रात की तन्हाई मे,चाँद को उलझाए गे अपनी शरारती बातों मे..जी भर के सताए गे अपने दीदार के लिए..


कमबख़्त,यह सितारें किस काम के है..हज़ारों की तादाद मे है मगर चाँद को इन बादलों से ना निकाल 


पाए है..उतार दी हम ने चुनरी सितारों वाली..पर यह क्या,चाँद निकल आया बादलों को चीर के...मिलने 


हम से...

Sunday 21 February 2021

 दुनियाँ पूछ रही है हम से हमारी ही पहचान...रहते है लफ़्ज़ों की नगरी मे और लिखते रहते है प्यार के 


नायाब एहसास...वो एहसास जो हम को विरासत मे अपने बाबा से मिले..वो एहसास जो माँ ने अपनी 


दुआओं मे हम को भर-भर के दिए...रूहानी-एहसास की कहानियाँ माँ-बाबा की सिखाई गई बातों से 


निकल कर ही आती है..कितना सिखा पाए गे दुनियाँ को वफ़ा-प्यार के असली मायने..इस छोर से उस 


छोर तक,यहाँ सलामत रहती है मुहब्बत वफ़ा के सब से ऊँचे से भी ऊँचे पायदान पर...निखरे है और 


सँवरे है तो बस लफ़्ज़ों की इसी कारागिरी से...पहचान तो सिर्फ हमारी इतनी भर है कि '' सरगोशियां'' 


नाम से हम जाने जाते है...कोई और नाम नहीं हमारा कि ''शायरा'' को ले जाए उस की मंज़िल तक ,


ताकि माँ-बाबा को अदब से जा कर मिलने का साहस जुटा पाए...

 दुपट्टा सरका जो सर से,क्यों सूरज डूबने पे मजबूर हुआ..आसमां को निहारा जो शाम ढले तो चाँद 


हमारी मरज़ी के मुताबिक क्यों निकलने पे मजबूर हुआ...शोख-शबनमी सी यह आंखे हमारी,झुके 


गी जब भी तो रात को गहराना ही होगा...खोल दे गे गेसू तो तुझे भी इसी रात के सदके,मिलने हमे 


आना ही होगा...ना कैसे कर पाओ गे,इस झांझर की उसी अंदाज़ी आवाज़ को रूह मे फिर से भिगोना 


होगा...तेरी रूह के खालीपन को कौन भर पाए गा..मेरी ही रूह के सदके तू सकून पाने,मेरी ही रूह 


से मिलने आए गा...

 जनून..जनून..जनून...यह जनून ही तो है जो हम को रातों को नींद से उठा देता है...कलम को हाथ मे 


दे कर,हमी से शब्द लिखवाता है..थकने की नौबत ना आ पाए,स्याही-दवात साथ मे रख देता है..पन्ने 


भी हमारे इस जनून को बहुत अच्छे से जानते-समझते है..बरकत की सौगात लिए संग-संग हमारे चलते 


है..सफर के इस दौर मे,साथी-दोस्त इतने जुड़े..हम दिल से उन के धन्यवादी हुए..वादा सभी से किया..


मंज़िल को हासिल कर के ही दम ले गे..बीच राह अपनी ताकत को ना छोड़े गे..''सरगोशियां''आप सभी 


की है,इतना अभिमान आप सभी को दे कर हम मंज़िल तक यक़ीनन  पहुंचे गे..

 तन्हाई से डर कैसा..अंधेरो से खौफ कैसा..उम्र गुजर रही है हर लम्हा-लम्हा,तक़दीर की लकीरों को साथ 


लिए...सब कुछ कैसे मिल सकता है और सुब कुछ छिन भी कैसे सकता है...हम ने ओस की बून्द को 


रखा हथेली पे अपनी,वो फिसल गई अपनी मरज़ी से घास के आंचल मे..तक़दीर की खुशियां भी कुछ 


ऐसी ही होती है..उम्र होती है थोड़ी सी मगर यादों को महका जाती है..गम ना कर,यह सब के साथ ही 


होता है..थोड़े गम और थोड़ी सी ख़ुशी..आ यारा,इन सब से चुरा ले बहुत सारी ख़ुशी...

 कभी जिया है इस ज़िंदगी को आप ने अपने लिए ...कभी जिया है इस ज़िंदगी को दूजों के लिए...वही 


रोज़-रोज़ का रोना,आज यह दुःख है तो कल कोई और रोना...खुद ही हारे है आप बार-बार पर इस 


ज़िंदगी ने अपना बिंदासपन नहीं छोड़ा...कभी इस ज़िंदगी को हमारी नज़र से तो देखिए जरा..दुखों के 


मेले मे भी,छोटी-छोटी खुशियाँ हम ढूंढ लेते है..और आप,सुखों की घड़ियो मे भी,मिले पुराने  दर्द को ही 


याद करते रहते है...जीने का सलीका जो आप सीख जाए गे,उसी दिन से खुद से ही मुहब्बत कर पाए गे..

 यह गुलाबी फूल और बेख्याली मे तुझे यू ही छू लेना...लबों का थरथराना मगर तुझ से कुछ बता ना पाना...


यह फूल, रंग गुलाबी से क्यों चमकीले इतने हो गए...शायद तुझे मेरी बात बिन कहे समझ आ जाए,


इसलिए शोख चमक से यह भी तुझी पे क़ुरबान हो गए...पत्थर है तू,पाषाण है तू...मगर इन फूलों की 


तरह हम तो तेरे प्यार मे नाज़ुक़-नाज़ुक़ से हो गए..चलते है तो यह हमारी राह मे बिछ-बिछ जाते है..


तेरी तरह पत्थर नहीं,यह तो हमारे नाज़ भी उठाते है...

 कितने ही सुनहरे परदों मे छुप जाओ..हमारी नज़रो से कैसे बच पाओ गे..तुम सलामत हो,यह पता है हम 


को...नादानी का मुखौटा कब तक पहन पाओ गे...लगे गा तीर जब तेरे दिल के आर-पार,मेरी यादों का..


तो लाखों परदों से खुद ही बाहर आओ गे...गुस्ताखी माफ़ यारा,खुद के दिल को बीमार होने से,मुझ से 


कैसे छुपा पाओ गे...धक्-धक् चलती यह धड़कनें तेरी,मेरे ही नाम की है...तो मेरा नाम लेना कैसे भूल 


पाओ गे...कोशिश ना करना यारा मेरे..बेमौत ही मारे जाओ गे...

Saturday 20 February 2021

 हम ने दरगाह मे चढ़ाई तेरी मुहब्बत की चादर...इबादत मे खुदा से मांग ली तेरी सलामती की चादर...


तेरे नाम की रूहे-चांदनी साथ लिए फिरते है..वो सज़दा जो हम ने दरगाह मे किया,वो यक़ीनन पाक रहा 


इतना...खुदा ने दो फूल गिराए झोली मे हमारी और हम तो जैसे तेरे नाम के सदके जी भर के जी उठे...


अब और क्या मांगे,तुझे मांग लेने के बाद...पायल की इस झंकार को संभाले या खुदा की इस नियामत 


को संभाले..कोई लफ्ज़ नहीं,इतना शुक्राना करने के बाद..मेरे अल्लाह,सज़दा करते है तुझे बारम्बार...

 दूरियों के फासले तो उन को डसते है जो प्यार मे फरेबी होने का गुनाह करते है...दूरियां है या बेहद 


नज़दीकियां,प्यार तो हर सांस के साथ कायम रहता है...मौसम की क्या बात कहे यह तो मौत के बाद 


भी रूह मे बसता है...मौत कहां इस प्यार के सिलसिले को तोड़ पाती है..जन्म ले के दुबारा फिर उसी 


साथी से उस अधूरेपन को पूरा करने के लिए मिलवा देती है...रात को सितारों के झुरमुट मे तुझ को 


देखा..सूरज की तेज़ रौशनी मे भी अक्स तेरा ही देखा..तू है हर जगह,यह कमाल तो सिर्फ हमीं ने देखा..

 प्रेम की पगडन्डी पे उतरे है पहली दफ़ा...रास्ते इतने इतने कठिन होते है,जाना पहली दफ़ा...तेरी बातों 


मे कभी भरा है इतना नशा तो दूजे ही पल रूखेपन का बेहिसाब खज़ाना है मिला...बिन बताए हम से 


नाराज़ हो जाना और महीनों गायब हो जाना...यह भी जाना पहली दफ़ा...प्रेम के उतार-चढ़ाव क्या ऐसे 


भी होते है..प्रेम के दर्द भी ऐसे होते है,यह तुझी से जाना पहली दफ़ा... तेरी बेवफाई की शिकायत किस 


से करे..तुझे बदनाम करने का कोई इरादा है ही नहीं...यह कसम खाई है तेरे लिए,तेरे साथ ...गज़ब तो 


गज़ब यह भी जाना सब पहली दफ़ा...

 पर्वतों के उस पार तेरे देश मे,हम तो सिर्फ तेरे मेहमान ही रह गए..ना देखा तुझे,ना मिले तुझे और सितम 


उस पे यह रहा कि तुझे छुए बिना ही तेरे अपने हो गए...उन वादियों मे तुम्हे कहां कैसे ढूंढे कि तुम तो 


जैसे कही ग़ुम हो गए..अचानक नज़र पड़ी पीले रंग के ढेरों फूलों पे..तेरे पसंदीदा मनमोहक फूल देख 


हम तो जैसे मचल-मचल गए...एक अहसास हुआ दिल को कि तू आस-पास ही है,यही-कही..कोई दिखा 


दूर से आते हुए नज़रो को झुकाए..हम समझ गए,यह तो मेरे मन के मीत ही चले आए...

Friday 19 February 2021

 दिल जो धड़का तो ऐसा धड़का कि शहनाई की गूंज तक जा पंहुचा...मिलन अधूरा ना रहे..समर्पण 


की बेला मे दिल पूरे जोरों से धड़का...पिया की संगनी,प्रेम की मनमोहिनी..जो अब उस की प्रिया भी 


है और है सहधर्मणी...आँखों के कोर लाज से घिर गए...जब पिया ने छू लिया उसे अपनेपन के भाव से...


प्रेम की उम्र थोड़ी ना हो,यह सोच कर वो संगनी से जयदा उस की प्रेमिका बन गई...शर्म-लाज की परतों 


से दूर,उस ने पिया को रिझाने की ठान ली... समर्पण-प्रेम ऐसा रहा कि वो तो उसी का प्रेमी बन कर रह 


गया...सादिया दोहराए गी तेरी-मेरी यह प्रेम-गाथा कि समर्पण की अब कोई सीमा नहीं.....




 रोए रात भर तुझे याद कर के इतना..फिर आप के शहर मे बारिश का पानी क्यों बरसा इतना...पूछा उन्हों ने 


हम से सिर्फ इतना ''क्या मेरी याद कल बहुत आई थी ''..मुँह से हमारे बेसाख्ता निकला '' आप का दिल 


तो पत्थर से भी पत्थर है,तभी तो यहाँ बारिश नहीं..गहरी तेज़ धूप का मेला है,आप के गुस्से की तरह...


मुस्कुराना तक आप को आता नहीं...जीवन की दौड़ मे चलना तक आता नहीं ''...बोले गहरी सांस ले कर 


वो, ''इतने अनाड़ी है,सर्द दिल है..तभी तो प्यार पाने आप के पास आए है..आप के रो देने से हमारा शहर 


पानी-पानी हो जाता है..गर हंस दे गे तो हम तो सातवें आसमां को ही छू जाए गे '' .....

 बालपन का वो दौर और घंटो खेलना और साथ-साथ महकना...कभी रूठ जाना तेरा और मेरा तुझे मना 


लेना..फिर कभी मेरा नाराज़ हो जाना और तुझे घंटो मुझे मनाने की प्यारी सी वो कोशिश करते रहना..


साँझ की दहलीज़ आते ही सारे गिले-शिकवे दूर हो जाना कि भूख से दोनों का बेहाल होना...काश..वो 


बालपन रुक जाता और झगड़ों का दौर भी साँझ तक ख़तम हो जाता...आज तुझे मनाने की कोशिश मे 


हार जाती हू मैं..खुद भी नाराज़ हू तुझ से,यह तक भूल जाती हू मैं..आ चल फिर से उसी बालपन मे लौट 


चले...जहा तर्क-वितर्क ना थे बस भूख से बेहाल होना ही,फिर साथ-साथ जोड़ देता था...

Thursday 18 February 2021

 देह थी चन्दन सी और मन सोने सा...दौलत पास थी इतनी और दुःखो का कोई मेला भी ना था...दिल 


भी मिले और प्रेम के धागे भी..फिर ऐसा क्या हुआ कि मिलन हो ना सका...रूहों के महीन धागे भी थे 


मजबूत इतने कि जहां भी कुछ कर ना सका...दुल्हन के लिबास मे वो मेरी होगी,यह सोच के वो सांतवे 


आसमां पे था..तक़दीर ने क्या फैसला दिया ऐसा...जीवन के तार टूट गए और दुल्हन के ख़्वाब सारे टूट 


गए...वो सांतवे आसमां से सीधा गिरा धरती पे और प्राण उस के अपनी दुल्हन के साथ निकल गए...

 बदल गई निग़ाहें तेरी मगर हम बदल नहीं पाए...रुक गए उसी मोड़ पर जहां कदम तेरे पहली बात पड़े...


हर रोज़ बहाने से उसी मोड़ पे जाते है,सिर्फ यह देखने भर के लिए..क्या पता तेरे कदम की आहट फिर 


इक बार और पड़े...बेसाख्ता मुँह से निकला,हे अल्लाह...पाक तो थी मुहब्बत मेरी फिर कदम उस के 


क्यों लौट गए...तेरी दरगाह मे सज़दा रूह से किया तो क्या मेरी दुआ मे कही खोट रहा...तू तो मुकम्मल 


है मालिक,मैं ही शायद छोटा सा ज़र्रा रहा..वरना जो कदम खुद चल के आए थे कभी पास मेरे,वो यू 


मुझ से दूर क्यों कर हुए...

Wednesday 17 February 2021

  ''हम से भी बेहतर बहुत होंगे...हम तो भरे है ढेरों कमियों से,हम से काबिल बहुत होंगे ''...बेहद तहजीब 


से यह कह कर उस ने उस का रास्ता छोड़ दिया...रोज़ रोज़ वही बात कहना...दिनों दिन दूर होते जाना...


बेरुखी का लहज़ा समझ आता गया...पर प्यार तो नाम है बलिदान का...तेरी ख़ुशी जिस के साथ भी हो,


हम राज़ी है तेरी ख़ुशी मे..शक्ल-सूरत ने हम को कभी मोहा ही नहीं...रूह की आवाज़ पहचानी थी..और 


यह आवाज़ बार-बार आती नहीं....तुझे मुबारक हो तेरा नया साथी..बेहद तहजीब यह बोल कर,वो उस 


की ज़िंदगी  से बहुत बहुत दूर हो गई...


 यह कागज़ कलम और दवात...किस ने किस को लिखा...कागज़ की अहमियत भी है तो कलम भी किसी 


से कम ना है..दवात की स्याही ना होती तो क्या होता...सब इतरा दिए अपनी अपनी अहमियत पे...दुलारा 


सभी को बेहद प्यार से और पुकारा अपना हमराज़ सभी को...पास बुलाया सब को और पूछा बेहद प्यार 


से '' गर हम कुछ लिखते ही नहीं तो आप सब क्या करते ?''..अहंकार किस बात का है...हम आप से जुड़े 


तो आप सब हम से जुड़े तो '' सरगोशियां'' इक प्रेम ग्रन्थ बन गई..लोगों ने पढ़े लफ्ज़ और प्रेम ग्रन्थ की 


महिमा सभी को अज़ीज़ हो गई...

 नतमस्तक हो जाए गे..तेरे दर की एक और सीढ़ी जो चढ़ी तो कायल तेरे हो जाए गे...बेहिसाब बेपनाह 


बातें करना...रेलगाड़ी की पटरी की तरह दौड़ते रहना...भूल गया,तू एक मुसाफिर है...किसी रोज़ रुकना 


होगा...क़दमों की चाप धीमे रख,वक़्त की चाल देख कर चल...ज़िंदगी का कोई भी पथ आसान नहीं..फिर 


बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ना,ज़िंदगी शायद इस का नाम नहीं...खुद ही इस चाल को धीमा कर ले,खुद 


को मेरे रंग मे रंग ले...हां,इसीलिए तो कहते है,नतमस्तक हो जाए गे...और खुद को मेरे रंग मे रंग ले...

 भारी सी पोटली आंसुओ की फ़ेंक दी कचरे के डिब्बे मे..कोई काम नहीं तेरा अब मेरे पास,जा दुनियां के 


किसी और वीरान कोने मे...हां,जाते-जाते इतना तो सुनती जा..तेरे दिए दर्द-दुखों से अब मेरा ना कोई 


वास्ता...बहुत समझाया तुझे कि मेरा रास्ता तुझ से आगे और तुझ से परे है बहुत जुदा...पर मेरी किस्मत 


पे तूने जाल बिछाया ऐसा और मैंने हर बार तरस खा कर तुझ को फिर से अपनाया...हंसी के लम्हे बेशक 


थोड़े होंगे पर तेरी तरह रोनी सूरत वाले तो नहीं होंगे...बहुत सोच कर पोटली समेत तुझे तेरे दर तक छोड़ 


दिया..गुजारिश इतनी,दफ़न यही हो जाना..फिर किसी के दिल को इतना न रुलाना...

 कोई ख़ुशी दस्तक देने नहीं आई दरवाजे पे मेरे..फिर भी क्यों दिल का आंगन खुशगवार सा है...क्या किसी 


ने बहुत दूर से मेरा नाम ले के मुझ को प्यार से पुकारा है...क्या जाने इस बात को,हम को बस पता इतना 


है कि दिल का यह आंगन ख़ुशी के सागर से तरबतर है..गुनगुना रहे है दिल ही दिल कि दिल का आंगन 


ही तो आज सब कुछ हमारा है...आईना देखा तो चेहरा गुलाल से गुलाब है...आँखों के किनारे कजरारे है..


पलके बेवजह लाज से भारी है...क्या कमाल है यह दिल का आंगन भी..बिन ख़ुशी के इतना खुश है..


ख़ुशी कोई मिली तो क्या होगा....

 सुरमई आँखों मे आज इतना उजाला कैसे...पांव पड़ते नहीं धरा पे तो कदम आगे बढ़ाए कैसे...राज़ छुपा 


है दिल मे गहरा,किस को बताए कैसे...यह ताप सूरज का कह रहा हम से,जा जी ले ज़िंदगी अपनी...यह 


चंदन सी महकती हवा छू के दामन मेरा,कह रही है भूल के सब कुछ...खो जा दुआओ के सागर मे इतना..


फिर कोई नज़र ना लगाए तेरी खुशियों पे,आसमां के परिंदो की तरह खो जा इसी आसमां मे जैसे...इंसानो 


की गन्दी दुनियां से अलग समा जा फ़रिश्तो के संसार मे ऐसे,जैसे जुदा हो के जिस्म से रूह उड़ती है वैसे...

Monday 15 February 2021

 प्यार मे काम क्या रंजिशों का..जो  प्यार दे गया उजाला रूह के दरवाज़े पे,उस मे नफरत का भला 


काम क्या...जैसे सूरज कभी अस्त हो कर भी अस्त नहीं होता..जैसे चाँद दिन की रौशनी के बाद रोज़ 


उदय होता...जैसे आसमां कभी धूमिल नहीं होता..सितारें जो सदियों से यू ही चमकते आए है...फिर प्रेम 


के अनमोल धागें बिखरे गे कैसे...रूह का उजाला इन मे अँधेरा क्यों दे गा..प्यार तो वो अहसास है जो 


जीवन के बाद भी कायम रहता है..जिस्म की माटी बेशक दफ़न हो जाए मगर प्यार यह सदियों तल्क़ यू 


ही चलता जाए...तभी तो कहते है,प्यार मे रंजिशों का क्या काम...

Sunday 14 February 2021

 '' कभी बेबाक हू मैं..कभी बिंदास हू मैं..कभी खुद पे ही हर्षित हू मैं..कभी शब्द मेरे ख़ुशी से खिल उठे..कभी यह शब्द दुःखो के सागर मे डूब गए...कभी-कभी सिंगार से बेहद सज़ गए तो फिर कभी सादगी के रूप पे निखर गए...लिख दी कभी परिभाषा काजल की धार पे तो कभी अश्रु ने बहा दिए काजल के शब्द अपने ही सैलाब से...घुल गई कभी पिया के रंग मे तो कभी उदास हो गई विरह के रंग मे..नख से शिख तक कभी श्रृंगार-विहीन हो गई तो कभी सुहाग के रंगो से सज गई..किसी को कभी जीना सिखा दिया तो कभी कोई इन शब्दों की वफ़ा से ज़ार-ज़ार रो दिया...अलगाव भी है,प्यार भी है..मगर ''सरगोशियां'' तो वफ़ा के सब से ऊँचे पायदान पे है...नज़रे कभी चुराती नहीं..प्यार को डरना सिखाती नहीं...कभी कोठे के दर्द पे लिख देती है तो कभी उस को उसी के संसार से अलग भी कर देती है...तवायफ भी इक औरत है..बलात्कार के दर्द से बेहाल नारी भी,प्यार को पाने की अधिकारी है...समाज को पाक-प्रेम का पथ और पाठ पढ़ाती इक मार्गदर्शिता भी है..मर्द को औरत की इज़्ज़त करने का गहरा सन्देश देती है और औरत को उस का दायरा भी सिखाती है...बहुत बहुत कुछ है प्रेम पे लिखने के लिए''...मेरी ''सरगोशियां'' से जुड़ने के लिए शुक्रिया दोस्तों... आप की अपनी सी शायरा...

 बोलने की क्या जरुरत है..प्रेम सिर्फ ख़ामोशी की बात सुनता है..शब्दों के ज़ाल मे क्या उलझाए तुझे 


कि शब्दों की बात भी तुम कब सुनते हो...शब्द और ख़ामोशी दोनों है प्यार के मखमली डिब्बे मे और 


प्रेम राजसी रंग की सुराही मे  कैद है...जज्बातों की किताब दिल के पन्नों पे लिखते रहते है...स्याही कभी 


कम ना पड़ जाए इसलिए तेरी यादों को साथ-साथ रखते है...यह निगोड़ी पायल बहुत गुस्ताखियाँ करती 


है..यह भी तेरी तरह दीवानी पागल है..मेरी बात यह भी कहा सुनती है..

 श्रृंगार के नाम पे उस के पास सिर्फ सूरत ही उस का गहना  था...दौलत की बात करे तो पास उस के 


 चंद लकीरों का छोटा सा मेला था...वो बोली उस से '' इतने भर से क्या मेरे बन पाओ गे ? बिन शृंगार 


 की मेरी यह सूरत क्या क़बूल कर पाओ गे ? इतनी ग़ुरबत है पास मेरे,क्या रिश्ता यह ताउम्र निभा 


 पाओ गे''? ख़ामोशी छा गई इतनी कि पत्तों की सरसराहट भी सुनाई देने लगी...नम आँखों से वो सब 


समझ गई..उठ के चल दी कि तभी एक आवाज़ सुनाई दी...''क्या साथ मेरे चल पाओ गी ? जीवन बहुत 


कठिन है मेरा,क्या राह के कांटे निकाल पाओ गी''...अब बारी थी आसमां के झुक जाने की और बरखा 


के खुल के बरस जाने की...





 मेला अरमानों का गज़ब ही था..ना थे सजना ना ही सजनी..दिलों की दूरियां बहुत दूर हो कर भी बहुत ही 


पास थी..उस के प्यार की खुशबू उस के पास थी और उस के प्यार से उस का दिल महक रहा था इतना...


लब जैसे ही मुस्कुराए,एक कशिश उभरी और वो धरा के उस पार इस कशिश पे मुस्कुरा दिया...फ़रिश्ते 


देने लगे दुआ जैसे और बेनाम से रिश्ते,रंगो के इंदरधनुष से खिल उठे जैसे..अब प्यार के दिन किस ने 


जाने और माने...एक था दिया तो दूजी बाती पर यह बात किस को समझ आती..

Saturday 13 February 2021

 तेरे साथ गुजारा नहीं मेरा...दौलत की छोटी सी चादर मे जिऊ कैसे संग तेरे...क्या सोचा था और क्या 


मिला..सपनो का घरोंदा मेरा तूने तोड़ा..ऐशो-आराम की ज़िंदगी की तमन्ना मेरी भी तो है...इक बड़ा सा 


घर और शाही ठाठ,यह मेरा सपना तू पूरा भी ना कर पाया..रोज़ की चिक-चिक और ज़िंदगी नरक बन 


गई...बिखरे रिश्ते और इसी दरमियान प्यार तो कही दूर बहुत दूर चला गया...तक़दीर को दोष देना और 


घुट घुट के जीना........'' यह प्यार हो ही नहीं सकता..जहां दौलत-आराम का पहरा हो और प्यार पैसो 


से मिलता हो..यक़ीनन,यह प्यार नहीं है...नहीं है...नहीं है''....

 धड़कनों का सज़दा करना और अपने प्यार के लिए सलामती की दुआ करना...पायल की रुनझुन को 


बेवजह खनकने देना..कभी चूड़ियों को यू ही बज़ा देना...इक मीठी सी याद पिया की और बरबस आँखों 


मे चमक का आ जाना...ख्वाब सारे पूरे हो या ना हो मगर प्यार मे कमी कोई ना आने देना...सादगी को 


सिंगार का ओहदा देना..जेवरात के नाम पे सिर्फ नख से शिख तक,मन मे एक खास उजाला रखना..


दिन हो बुरे या फिर अच्छे,परवाह किए बिना...उम्मीद का दामन संभाले रखना...हां,यही तो प्यार है......

Friday 12 February 2021

 बेहद प्यार से बाहें फैला कर,ज़िंदगी को फिर से खुद मे शामिल कर लिया...कहर ले रहा है विदा,हम 


ने इस कहर को भी धन्यवाद दिया...कुदरत के नज़ारे कितने प्यारे है,ख़ुशी -ख़ुशी इन को फिर से गले 


लगा लिया...कौन जाने ज़िंदगी की मोहलत कब तक हो..हम ने फिर से भरपूर जीने का फैसला कर 


लिया..जीवन की साँसे बहुतों को देते आए है और बदले मे करोड़ो दुआए लेते घर आए है..पांव ज़मी 


पे रखते है कि उस के हर आदेश से ही चलते है..सिर्फ और  सिर्फ दुआ लेना सीखिए..फिर सब कुछ 


उसी पे छोड़ दीजिए..

 ना पूछिए हम से,हम किस मोड़ पे है...ना पूछिए हम से,हम किस राह पे है...क्यों कह रही है यह फ़िज़ाए 


जीने के दिन तो अब आए है..क्यों बुला रही है यह वादियां कि अभी तो ख़ुशी के दिन आए है..यह चुनरी 


है तो मलमल की पर क्यों लगता है,यह महकी है किसी पाक दुआ से..कौन जाने कब कोई हम पर अपनी 


दुआए बिखरा गया..शायद यह माँ ही होगी जिस की दुआ ने हम को खूबसूरत रास्ते पे बहुत सलीके से 


चलाना सिखा दिया..शायद यह मेरे बाबा ही होंगे जिन की अंगुली ने फिर मेरा हाथ चुपके से थाम लिया...

 बार बार यू रोए गे तो जीवन को कैसे जी पाए गे..बस यह सोच कर जज्बातों के समंदर से बाहर निकल 


आए..यह जज़्बात भी क़यामत है..ना तो इंसान को फरिश्ता बना पाते है और ना ज़िंदा ही रहने देते है...


खोखला करते है दिमाग और दिल को राख़ कर देते है..बहुत सोच कर इन को खुद के दिल से जुदा कर 


दिया...अब दिल है हल्का और दिमाग..वो तो माशाअल्लाह मस्ती मे चूर है..लगता है अब तो बैरागी हो 


गए है हम..जीना भी आसान हो गया है इतना..पांव थिरक रहे है खुद की ही धुन पे और आसमां तो जैसे 


सज़दा कर रहा है हम को इतना...

Thursday 11 February 2021

 चारों तरफ यह प्यार का मौसम और झूठे वादों का नया सा वही पुराना मौसम...वल्लाह,कैसी सी बात 


है..फिर कोई सज़ा इस मौसम के लिए,इक नए शिकार की तलाश मे..मौसम यह गर चंद दिनों का है 


तो शिकारी का जाल भी तो चंद महीनों का है..सज़े-संवरे,खुद की असलियत को छुपाए प्यार की दहलीज़ 


पे आए...ना प्यार दिलों मे है और ना रूह-ज़मीर की कहानी किसी के इर्द-गिर्द भी है..रूप भी नकली 


प्यार भी नकली..तोहफों की बाढ़ मे कुछ दिनों के लिए दुनियां बदली...ना कोई यहाँ है किसी पे जान 


लुटाने वाला और ना कोई किसी को प्यार का सही अर्थ बताने वाला...नकली सजावट के यह चेहरे...


प्यार के नाम को बदनाम करते कुछ शिकारी और दोहरे चेहरे .....


Wednesday 10 February 2021

 '' गुजर जाए गे तेरे प्रेम मे किसी भी हद तक,बस तू मेरा हो जाए..तेरा-मेरा जीवन हो दौलत-ऐशो आराम 


की छाया,मौसम प्रेम का ऐसा ही हो''....कितना कच्चा-फीका प्रेम का रिश्ता....सिर्फ पा लेना प्रेम कहां है..


जहां प्रेम मे प्रेम से पहला पैसा आया..जहां प्रेम मे कोई सौदा आया..जहां प्रेम मे सुंदर सूरत का ही पहला 


ख्याल आया...वहां प्रेम कहां से आया...''तेरा-मेरा साथ है दौलत की दीवारों से ऊपर..तू रहे सलामत,इस 


से जयदा और क्या मांगू...इस दुनियाँ से मुझ को क्या लेना-देना...तुझ से है मेरी यह दुनियाँ''...प्रेम की 


पाठशाला का पहला-आखिरी मन्त्र यही है....

 प्रेम...की महिमा को उस ने इस रूप मे लिया..पहले देखी प्रियतम की ख़ुशी,फिर बाद मे जान लुटा दी 


अपनी....कदम से कदम मिलाए उस से और संगनी कहलाई उस की ...कितने दोष से उस के अंदर पर वो 


कभी ना घबराई थी ..गर होगी ताकत प्रेम मे मेरे तो वो सब दोषों-गलतियों से सीख जाए गा..ढाई अक्षर प्रेम  


के बदले ढाई करोड़ जज्बातों को उस ने उस पे वार दिया...जितना वारा,उतनी तपी प्रेम मे उस के...संसार 


सारा त्याग दिया...ना वो थी मीरा,ना राधा थी,ना आसमा से उतरी थी..वो तो बस प्रेम की गहरी मूरत थी..

Tuesday 9 February 2021

 ढाई अक्षर प्रेम के और दुनियाँ रंगो से भर गई..पर यह क्या हुआ..उस के प्रेम के गाज़ गिर गई..जो उस 


का ना हुआ तो और किस का होगा...वो उस को मान सजना,उस को प्रेम-बेला मे समर्पित हो गई...और 


उस ने झूठे वादों से उस को अपना बना लिया..प्यार के अनमोल पिंजरे मे वो ढली, उस के असीम प्रेम 


मे ढली....अफ़सोस..पिंजरा खोला उस ने और प्रेम को उड़ा दिया..यह कह कर ''प्रेम ही तो था ''....क्या 


प्रेम ऐसा भी होता है ???????

 गुलाब का मौसम है या प्रेम का..इन लाल गुलाबों को देख कुछ ख्याल आया..प्रेम...क्या इस का भी 


मौसम होता है..इर्द-गिर्द देखा तो कुछ जोड़े आगोश मे लिपटे नज़र आए..जो पिछले मौसम किसी और 


के साथ किसी और की आगोश मे थे...वादे जो उस से किए थे,आज इस के साथ है..प्रेम..बिकता भी है ?


यह देख हैरान हो गए..ज़िस्मों के सौदे हुए और फिर मौसम के साथ दोनों इक दूजे को भूल भी गए...वो 


उस की जानू..बाबू थी और आज पुरानी जानू बाबू की जगह इक नई जानू बाबू है...वाह..क्या प्रेम है ....

Sunday 7 February 2021

 कुछ सुने गे तो कुछ अनसुना कर जाए गे..प्यार मे अब यह रस्म भी अदा कर जाए गे...बेरुखी की कीमत 


जानते हम भी है,मगर इतने सस्ते हो जाए..प्यार मे ऐसा भाव नहीं खा सकते है हम...बहुत ऊँचा है प्यार  


का हमारा यह पैमाना..तभी तो गज़ब का नूर साथ हमारे चलता है,यह भी  है हमारा दीवाना...गर इतने 


सस्ते प्यार मे हो जाए गे तो इस दुनियाँ को इस प्यार की कीमत कैसे समझाए गे...कीमत तुम इस प्यार 


की क्या जानो..कीमत तुम इबादत की भी कहा जानो..गरूर और बेरुखी को साथ रखो बेशक....अकड़ 


को भी साथ बांध लो अपने... हम तो प्यार को सिर्फ और सिर्फ प्यार ही नाम देते है...

 यह कैसी सी मुहब्बत है...कही घुल रहे है सिर्फ जिस्म तो कही एक रूह से दूजी रूह जुड़ गई...कही 


वादे हुए झूठे तो कही मुहब्बत इसी मुहब्बत की अगली सीढ़ी पे बढ़ गई...कही तोहफे और दौलत से 


मुहब्बत बिक गई तो कही दौलत तोहफों से परे,मुहब्बत इबादत मे ढल गई...किसी ने इसी प्यार के 


मौसम को ही प्यार माना तो कही इक मुहब्बत,पाक पवित्र बंधन की तरह बेहद पाक हो गई...एक 


जगह था जिस्म का झूठा खेल तो दूजी तरफ यह मुहब्बत..पिया मान उस को पूर्ण समर्पित हो गई...


मुहब्बत जिस्मों का मेल नहीं,मुहब्बत दौलत का खेल भी तो नहीं...जो अलौकिक  हो गया इस 


मुहब्बत मे,बस वही मुहब्बत का शहंशाह बन गया...

 सिर्फ आँखों मे काजल की इक रेखा और होठों पे हल्की सी लालिमा लिए,तुम से मिले थे हम..इसी 


सादगी पे फ़िदा हुए थे तुम..बस तभी से तेरी ज़िंदगी मे दाखिल हो गए हम...ना तुम से कुछ माँगा कभी,


ना शिकायतों का झोला तुम को दिया...अपने अस्तित्व तक को भुला दिया और तेरे हर कदम पे हम 


साथ कदम रखते रहे..तुझे प्यार करने की हज़ारो वजह है मगर हम भी तो तेरी ही सादगी पे निहाल हो 


गए...सजती है जब भी थाली इबादत की,आज भी तेरे ही नाम के हम कायल हो गए...

 कायनात का भी तब तक नाम ना था..इस पृथ्वी पे कोई और भी ना था...बस ऊपर वाले ने नाम तेरा,मेरे 


नाम के साथ लिखा पर अफ़सोस,हाथ की लकीरों मे साथ तेरा ना लिखा..हम धरा पे आए सिर्फ तेरे लिए..


तेरी तलाश मे भटकते रहे...सदियों तक भटक-भटक कर दर्द से बेहाल हो गए...ढूंढ़ते कैसे कि तेरे साथ 


तो तेरे अपने हो गए..और हम फिर अकेले ही रह गए..कितनी सादिया और आए गी,कितनी बार जन्म 


ले गे...पूछते है उस कायनात से,क्या बिगाड़ा था मैंने तेरा,जो नाम तो लिखा उस का मेरे नाम के साथ..


पर हाथ की लकीरो को खाली क्यों छोड़ा...

 प्यार और प्रेम को समझना होगा...जिस्म की मांग के साथ .रूह का प्रेम भी तो समझना होगा...यह फूल 


यह तोहफ़े और ढेरों दौलत के साथ,प्यार को प्यार बनाने वालो...दूर तक दुःख-सुख निभाने के सच्चे 


वादे भी तो करने होंगे...ईमानदारी,वफ़ा के असली मतलब भी तो निभाने होंगे...आज तू है तो कल कोई 


और भी होगा..जिस्म का खेल बार-बार सभी के साथ होगा..यह प्यार-प्रेम नहीं हो सकता..''हर हाल मे 


साथ निभाने का वादा हो..ना फूल हो,,ना तोहफ़े हो,,ना दौलत के भरे ख़ज़ाने हो..बस तोहफा हो तो 


 ईमानदारी का..तेरे है सिर्फ तेरे ही है...तेरे सिवा किसी के भी ना है''...फिर तो सब दिन अपने ही है..

 प्यार की वो भाषा कितनी ही खूबसूरत रही होगी...खामोश थी वो और खामोश थे वो...बह रही थी नदी 


की धारा और मुहब्बत वफ़ा के सब से ऊँचे पायदान पे थी...छुआ नहीं था किसी ने इक दूजे को मगर 


वो मुहब्बत बहुत अनमोल थी...ना जाने कब से वो जुड़ी थी रूह से उस की और वो सही मायने मे 


कद्रदान था उस का...ना उस के ख़यालो मे कोई और था, ना उस के ज़ेहन मे किसी और की मूरत थी..


बने थे दोनों इक दूजे के लिए,हालंकि दोनों की कभी मुलाकात तक ना हुई थी...

Thursday 4 February 2021

 कितना गरूर इस चाँद मे देखा...मुझे तो रोज़ चमकना है रात भर,इतना तुनकमिज़ाज देखा...चांदनी 


मेरे बगैर क्या कर पाए गी,इतना विश्वास खुद के गरूर पे देखा...चांदनी तो है बस चांदनी...प्यार से 


बादलों को इस गरूर का बताया..चाँद छुपा दिया बादलों की गहरी चादर मे और चाँद.....कुछ भी ना 


कर पाया...टूटा गरूर और चांदनी का महत्व समझ आया..तेरे बिना मेरा गुजारा नहीं,सीधा सही राह पे 


आया...

 कभी फासला बढ़ा दिया तो कभी फासला ही मिटा दिया...कभी गुस्से की आग मे जल कर,खुद को 


बरबाद कर लिया...यह तो खेल है सब तक़दीरों के..खामखा ना उलझ इन से...सकून और ख़ुशी की 


कीमत क्या है ? सकून और सुख की उम्र भी क्या है ? ज़िंदगी सिर्फ कुछ लम्हे देती है सकून-ख़ुशी 


के,बाकी तो सारे दिन तकलीफ़ों की भेंट चढ़ जाते है...कभी खुद से भी प्यार कर के देख जरा,यह 


ज़िंदगी तेरी हंसी और मुस्कराहट से हार कर...तुझे सकून-ख़ुशी देने पे मजबूर हो जाए गी....सादा सी 


दाल-रोटी भी चेहरे पे गज़ब का नूर लाए गी...

Wednesday 3 February 2021

 इस पार या फिर उस पार...कुछ बिखरे तो कुछ टूटे अहसास...फूल ही फूल हो चारों तरफ और कांटा 


एक भी ना हो..यह मुनासिब तो नहीं...संभल संभल के चल कि ज़िंदगी हज़ारो काँटों से घिरी इक फूल 


ही तो है...एक मुस्कराहट पाने के लिए,कितने कांटे चुभते है तभी तो  कही जा कर होठों पे कुछ गुलाब 


खिलते है...मशक्क्त जिस्म की हो या रूह के ताने-बाने की..ख़ुशी तो सही वक़्त पे ही मिलती है...इस पार 


ना रह ना उस पार कि यह ज़िंदगी तो तेरी-मेरी इक कहानी ही तो है...मुस्कुरा इसी पल मे,कल की किस 


ने देखी है...

 पिता के दिए संस्कारो की डोर ऐसी थामी...जो सिखाया जो पढ़ाया,संग बांध के ज़िंदगी की राह को आगे 


बढ़ाया हम ने..चले तो अकेले ही थे पर साथ हज़ारो का काफ़िला पीछे-पीछे आया...मुड़ के अब क्या देखे,


कि दूर तेज़ रौशनी का नूर नज़र जो आया...संस्कारो की जोत कुछ सीखे तो कुछ को कुछ समझ ही ना 


आया..पिता के उसी रास्ते पे कितने जुड़े ऐसे जिन को हम मे अपने ही पिता का अक्स नज़र आया...


दम्भी,अभिमानी,कठोर फंसे अपने ही गरूर मे,शायद संस्कारो का मोल उन को बेकार नज़र आया...


Tuesday 2 February 2021

 खता इतनी भी कर कि तुझे माफ़ भी ना कर सके...ज़िंदगी के जिस कगार पे है वहां से ज़िंदगी दुबारा 


नहीं मिलती...बहुत मन्नतों से ज़िंदगी को समझ पाए है...नाराज़ क्यों करे इस को कि इस के  हर फैसले 


हमारे बड़े काम आए है...यह जब भी थिरकती है,हम भी ख़ुशी से झूम जाते है...यह देती है दर्द तो हम 


भी ग़मगीन हो जाते है...इस के साथ बेहद प्यार से चलते है...खता की सोचते भी नहीं कि इस के बिना 


गुजारा हमारा इक पल भी तो नहीं...तूने शायद इस ज़िंदगी को ठीक से समझा -जाना नहीं..यह बेबाक 


और बिंदास है हमारी तरह जो दिल मे खलिश भी रखती तक नहीं...

 सुबह के प्यारे आँचल से निकल के,यह शुभ दोपहरी आ गई...किस ने कहा कि ज़िंदगी बुझने के कगार 


पे आ गई...सुबह जब सुहावनी मिली तो दोपहर का तेज दिल को ख़ुशी के हिलोरों मे भिगो-भिगो गया...


शाम-संध्या तो यक़ीनन और भी खूबसूरत होगी..जब इबादत के दीए जले गे हर तरफ..चाहे वो मंदिर 


हो या मस्जिद या वाहेगुरु का धाम...दिल का सकून पाना है तो बार-बार दौलत ना गिन...गिनना है तो 


दीए इबादत के गिन..होगा जब दिल रौशन तो ख़ुशी खुद ही तेरा दर ढूंढ ले गी...यकीन बस उसी पे कर..

 ना बांध के  रख मुझ को रूह से अपनी कि मैं इस दुनियाँ मे ज़ी ही ना पाऊ...मुहब्बते-दास्तान का वो 


पहला दिन और तेरी हंसी का आगाज़ हुआ मुझे पहली ही बार...वो होंठ जो कभी मुस्कुराते तक ना थे..


वो अपनी लक्षमण-रेखा को तोड़ गए कैसे...दाद दीजिए हमारी वफाए-मुहब्बत को कि आप को हंसना 


तो क्या,बेखौफ जीना तक सिखा दिया...मुस्कुराते है अकेले मे..वल्लाह...इक मरे हुए इंसान को हम ने 


जीना सिखा दिया..बात-बात पे जो सब से उलझ जाए,उस को तहजीब का पाठ सही से सिखा दिया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...