ना मिला प्यार ना सम्मान का इक क़तरा मिला...ज़ज़्बातो के सैलाब मे हम पूरी तरह उन के हो गए...
''हम उन के काबिल ही नहीं ''..यह जान कर जो गाज़ हम पे गिरी...बयान किस से करते...इक बार तो
सोचा कि पूछे उन से,जब बिठाया था अपनी पलकों पे हम को तो वो कमियां नहीं देखी तुम ने...कभी
हम को फरिश्ता कहने वाले,आज देख के हम को नज़र अपनी फेर लेते है...आईना तो आज भी हम
से कोई शिकायत नहीं करता..जो सच दिखता है हम मे,बस वही सच दिखाता है हम को..तुम भी तो
हमारा आईना ही तो थे,फिर कमियों का बसेरा हम मे कब से देखा तुम ने...