शाम फिर से घिर आई है..फिर होगा धुंदलका और रात ख़ामोशी का लबादा ओढ़े,चाँद की आस मे
अकेले वीरान हो जाए गी...हम साथ होंगे उस के,उस के वीरानेपन मे..और अपने चाँद को देखने के
के लिए तेरे संग-संग जागे गे..अश्क बेशक गिरे गा आंख के इस कोर से..मगर तुझे तेरे दर्द मे रोने ना
दे गे...शाम को शाम रंगीन ही कहे गे और रात को रात का वो नूर कहे गे,जो उदास तो होती है मगर
अपने दर्द के साथ गुजरने के बाद भी दुनियाँ को नए उजाले से भर जाती है..