Saturday 13 March 2021

 शाम फिर से घिर आई है..फिर होगा धुंदलका और रात ख़ामोशी का लबादा ओढ़े,चाँद की आस मे 


अकेले वीरान हो जाए गी...हम साथ होंगे उस के,उस के वीरानेपन मे..और अपने चाँद को देखने के 


के लिए तेरे संग-संग जागे गे..अश्क बेशक गिरे गा आंख के इस कोर से..मगर तुझे तेरे दर्द मे रोने ना 


दे गे...शाम को शाम रंगीन ही कहे गे और रात को रात का वो नूर कहे गे,जो उदास तो होती है मगर 


अपने दर्द के साथ  गुजरने के बाद भी  दुनियाँ को नए उजाले से भर जाती है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...