देती रह कितनी ही उथल-पुथल ऐ ज़िंदगी..तुझ से हार जाए,यह कब सीखा है हम ने...कोशिश भी ना
करना,हम को अपने क़दमों मे झुकाने की..क्यों कि हम ने तो तुझे हर पल अपने सर-आँखों पे ही
बिठाया है...तूने बेइंतिहा दर्द-तकलीफ़े दे कर भी हम को देख लिया ना...शिकन भी तू देख ना पाई
हमारे रुखसार पे..आगाह तुझे ही कर रहे है,संभल जा ऐ ज़िंदगी..क्यों कि साथ हमारे हर पल उस
मालिक का साया साथ रहता है..तू देती है दर्द तो वो साथ-साथ हम को ढेरों नियामतें देता रहता है..
अब देखना तो यह है कि जीते गा हमारा विश्वास उस मालिक के लिए या तेरा झूठा गरूर जीते गा..