Tuesday 2 March 2021

 देती रह कितनी ही उथल-पुथल ऐ ज़िंदगी..तुझ से हार जाए,यह कब सीखा है हम ने...कोशिश भी ना 


करना,हम को अपने क़दमों मे झुकाने की..क्यों कि हम ने तो तुझे हर पल अपने सर-आँखों पे ही 


बिठाया है...तूने बेइंतिहा दर्द-तकलीफ़े दे कर भी हम को देख लिया ना...शिकन भी तू देख ना पाई 


हमारे रुखसार पे..आगाह तुझे ही कर रहे है,संभल जा ऐ ज़िंदगी..क्यों कि साथ हमारे हर पल उस 


मालिक का साया साथ रहता है..तू देती है दर्द तो वो साथ-साथ हम को ढेरों नियामतें देता रहता है..


अब देखना तो यह है कि जीते गा हमारा विश्वास उस मालिक के लिए या तेरा झूठा गरूर  जीते गा..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...