Thursday 11 March 2021

 यू तो रोज़ ही ज़िंदगी के रंगो से रूबरू होते रहते है...आज सोचा,ज़माने को भी याद दिला दे कि ज़िंदगी 


का रूप असल क्या है...नरम नरम पत्ते,जो भरे है मासूमियत से..उन को एक दिन ऐसे ही ज़िंदगी को 


छोड़ देना है...यू ही किसी रोज़ ज़िंदगी को छोड़ देना है..तो क्यों करे इस से शिकवा,क्यों कहे तूने कुछ 


नहीं दिया..अरे पगले,कितना कुछ तो दिया है..अब तेरी ही समझ ना आए तो यह ज़िंदगी क्या करे..रोनी 


सूरत लिए मरा-मरा जीता है..ईंट-पत्थर-दौलत को पाने के लिए खुद को बर्बाद कर लेता है..बिन नसीब 


कब किसी को कुछ मिलता है..मेरे बाबा-माँ सच ही कहते थे '' जितना है अभी पास तेरे,उस मे जीना 


सीख..बस अपने असूल मरने से इक मिनट पहले भी ना छोड़..हिम्मत को साथ रख के चलना नहीं 


तो यह ज़माना तुझे नोच के खा जाए गा..सर उठा के जी...दौलत-पत्थर का लालच कभी ना कर ''...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...