Monday 1 March 2021

 बहुत सज़-धज़ के वो निकलने लगे, घर से किसी नए साथी की तलाश मे...खुद को देखते रहे आईने मे  


थोड़ी थोड़ी देर मे...अंदर तक जानते है उन को..शरारती मुस्कान बिखरी हमारे रुखसार पे,जो बोल 


उठी...सिर्फ दो पल का साथ पाने के लिए,क्यों मशक्क्त इतनी..मौसम के वो फूल दूर तक आप का 


साथ नहीं निभा पाए गे...तो क्यों इतने सज़े-धज़े उन पे निसार होने चले...हर किसी को बाबू,जानू और 


हीरो कह कर बुलाए गे तो इश्क के बाज़ार मे आप के भाव कौड़ियों के  हो जाए गे..









दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...