मेरी रूह को सिर्फ छू भर ही सको,इतनी भी क़ाबिलियत कहाँ होगी तुम मे..मेरे साथ-साथ इक कदम
भी चल लो,इतनी हिम्मत भी कहाँ होगी तुम मे..इस ज़िंदगानी को यू ही हंस-बोल कर नहीं जिया हम
ने..हकीकत के हर पन्ने को बहुत करीब से पढ़ा है हम ने..कितने दर्द कितनी तकलीफ़े छुपी रही दिल
के अंदर,महसूस तो तब कर पाते जो यह दर्द-तकलीफ समझने का अहसास तक भी होता तुम मे..
तुम ने सिर्फ इक औरत ढूंढी हम मे..पर भूल गए इस देह से कही ऊपर हम अपनी रूह के मालिक
है...जहाँ सौदा क़बूल नहीं होता,यह तुम को समझ आता कैसे..खड़े है और रुके है सदियों से प्रेम के
उच्तम पायदान पे..ना जाने कितने जन्म तुम्हे लेने होंगे इस रूह को सिर्फ छूने भर के लिए..