वो बोले तो कुछ नहीं,हमेशा की तरह...मगर उन की ख़ामोशी की जुबां हम समझ गए,हमेशा की तरह..
यू ही चुप रहना..लबों की मुस्कराहट को हमेशा लबों मे कैद रखना...''दिल की गिरह कभी तो संग
हमारे खोलिए..खोले गे नहीं तो दर्द से यू ही बेहाल रहे गे,हमेशा के लिए ''...फैसला छोड़ दिया अब
मरज़ी पे तेरी..तुझे दर्द से रिहा होना है या दर्द के साए मे खो जाना है...हसरतें भी कभी कभी बोल जाती
है..एक तू ही पागल है जो लबों को सी कर रखता है..हमेशा की तरह...