यह भी क्या बात है...ढूंढ़ने चले खुशियां जयदा पर चैन मन का गवा दिया..जो है आज अपना,उस को तक
भुला दिया..ना ढूंढ ख़ुशी कल के लिए..जो मिला है उतने मे जी सब की ख़ुशी के लिए..मांगने से यह ख़ुशी
कब मिलती है..जब वो चाहे तभी मिलती है..खुद को गिरा दिया तो क्या किया,सकूँ ही तो गवा दिया ..
उस की मरज़ी से एक पत्ता भी ना हिलता है और तूने दुनियां को अपनी ही मुट्ठी मे कैद करने का सपना
खुद ही देख लिया..यह भी कोई बात है...