टूटे तार जब दिल के तो उस ने आशियाना ख़ामोशी का बना लिया...एक तरफ बैठा था बादशाह तो
दूजी तरफ उस की रानी को बिठा दिया...ना तो वो बादशाह था असली, ना रानी का कोई वज़ूद था...
बस इक खवाब जो देखा था कभी उस ने,उस को यू ही अपने घर के आंगन मे सजा दिया...वो सोचती
रही,वो अपने बादशाह की बेगम है और बादशाह उस को झूठी आशा देता रहा..करता रहा ना जाने
कितने झूठे वादे उस से और उस का भोला सा मन उस को अपना खुदा मानता रहा...