रात गहरी सी और सितारे भरे हुए आसमां मे बहुत सारे...फिर भी उस ने खुद का आंगन सिर्फ दिए से
रौशन क्यों किया...हर सितारा उसी का अपना था,फिर किस लिए सहारा उस ने दिए का लिया...क्या
कुछ गिला उस को किसी सितारे से था या यह सिर्फ उस की खुद्दारी का कोई पैमाना था...कुछ बताना
उस की फितरत ही ना थी...मन की गांठे मन मे रखना उस की खास आदत जो थी...दिए जल उठे उस
के आंगन मे,यह रौशन सा फ़साना उस के दिल के अंदर ही तो था...