Monday 7 December 2020

 दुनियाँ का यह कारवाँ गुजरा बहुत ही करीब से मेरे...हर बार वही सवाल पूछा मुझ से..''जीवन और 


ज़िंदगी मे फर्क है कैसा''...हर बार क्यों खामोश रहे है हम..मुस्कुराना अब हमारा था लाज़मी..जीवन 


दिया तो उस ने मगर हम ने खुद ही इस को ज़िंदगी मे तब्दील कर दिया..इतनी ख्वाइशें जोड़ ली साथ 


इस जीवन के कि उलझा कर नाम इस का ज़िंदगी कर दिया...फूल भरे बहुत कम और कांटो से इस का 


दामन तरबतर कर दिया..जनाबेआली..जवाब पूरा दे गे तो क्या यह दुनियाँ लौट आए गी फिर उस सुंदर 


जीवन की परिभाषा पे...तभी तो रहते रहे खामोश कि यह दुनियाँ जीवन को कब साथ अपने बांध 


पाए गी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...