हवा को गुमान है कि वो कभी भी कही उड़ सकती है...बदरा भरा है अपने नीर के गरूर मे..और यह
आसमाँ जो कही भी अपनी मर्ज़ी से धूप छाँव कर देता है..सूरज को छुपा अपने आँचल मे जहाँ को
हैरान कर देता है...सितारों का टिमटिमाना और चाँद का छुप जाना..बादलों को क्या समझाता है...क्यों
गुमा है इन सब को कि शरारत का दावा क्या यही कर सकते है...उस की मर्ज़ी जिस दिन शरारत पे
उतर आई तो इन सब की शामत कभी भी आ सकती है....