Monday 7 December 2020

 हवा को गुमान है कि वो कभी भी कही उड़ सकती है...बदरा भरा है अपने नीर के गरूर मे..और यह 


आसमाँ जो कही भी अपनी मर्ज़ी से धूप छाँव कर देता है..सूरज को छुपा अपने आँचल मे जहाँ को 


हैरान कर देता है...सितारों का टिमटिमाना और चाँद का छुप जाना..बादलों को क्या समझाता है...क्यों 


गुमा है इन सब को कि शरारत का दावा क्या यही कर सकते है...उस की मर्ज़ी जिस दिन शरारत पे 


उतर आई तो इन सब की शामत कभी भी आ सकती है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...