Tuesday, 22 December 2020

 हर सांस के साथ पिरोते रहे,इस ज़िंदगी की माला...कभी रही फूल सी हल्की यह साँसे तो कभी दर्द के 


भार से भरी रही यह साँसे...खड़ी थी सामने यह ज़िंदगी.अरमानों की गठरी लिए...चाह कर भी इन साँसों 


का यह चलता काफिला रोक ही नहीं पाए...ऐ कुदरत,दे कोई इशारा अपना...भर दे या तो यह गठरी 


अरमानों की या इस गठरी को अंधेरो मे ग़ुम कर दे...करिश्मे तो तेरे कितने होते है...कभी दिखते है 


खुली आँखों से तो कभी पहाड़ो को चीर समंदर तक को भिगो देते है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...