Thursday 24 December 2020

 बहुत गहन ख़ामोशी हो तो भी लफ्ज़ सुन ही जाते है...हज़ारो आवाज़े चीखती रहे मगर ख़ामोशी की वो 


आवाज़ जिस को सुननी है.उसे सुन ही जाती है..मौन भी तो इक सुखद भाषा है,बेशक हो उस मे गिले 


कितने..शिकवा तो यह ख़ामोशी भी कर देती है,बात सिर्फ ख़ामोशी की भाषा समझने की है...मौन हो 


या ख़ामोशी..फर्क सिर्फ इतना होता है..मौन को सुनने के लिए दिल प्यार से भरा होता है..ख़ामोशी की 


बात इतनी सी है,गिला हो या शिकवा कैसा भी...वो दर्द की राह आँखों से बह जाता है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...