Friday 25 December 2020

 ऐसा तो नहीं कि पहली बार ओस की चादर मे बैठ कर रोए है...पर हां,आज पहली बार अपने आँसुओ 


की बहती चादर पे सोए है...करवट भी लेते है तो सैलाब फिर से दस्तक दे जाता है...हैरान है तो परेशान 


भी कि इन आँसुओ की तह कितनी दबी थी अंतर मे...मुस्कराहट दे कर कितनो को,खुद ख़ामोशी से 


जीते आए है..खबर किस को कि कितनी दूर अब निकल आए है...रात है कि खत्म होने को तैयार ही 


नहीं...शायद इस बांध के रुकने की इंतज़ार मे,सुबह भी अब तक नहीं आई है...





दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...