जिस्म को जब जब ढाला रूह की आवाज़ मे..वो बहती नदिया की तरह शुद्ध और पावन हो गया....
रूह की आवाज़ इतनी बुलंद थी कि जिस्म खाक होने से पहले अलौकिक हो गया...कंचन काया का
स्वरूप निखरा ऐसे कि पूजा अर्चना के लिए बेहद शुद्ध हो गया...अब ना तो इस का कोई मोल है ना
कोई तोल है...यह तो अब अनमोल हो गया...दुनियाँ के लिए बेशक यह इक जिस्म होगा पर जो ढल
गया रूह की आवाज़ मे,वो अब कोई जिस्म नहीं,यह तो मंत्रो की माला मे कब से विलीन हो गया...