हटा पहरा सूरज का तो हवा कहर ढा गई...किसी ने पूछा हम से,यह हवा आप को क्या बता गई..ओह,
यह हवा हम को क्या बताए गी..यह हम को क्या सिखाए गी..जो खुद चलती है हमारे ही इशारों पे,वो
हम को क्या सन्देश दे जाए गी..हम ने घूँघट मे अपना चेहरा छिपाया तो सूरज को छुपना पड़ा...हवा को
अपने दुपट्टे से लहराया तो यह जग को महका महका गई...अब जनाब,जयदा ना पूछिए...जो हम खुल
के मुस्कुरा दिए तो क़हर छा जाए गा..बरसे गा बादल खुल के और यह जहाँ सर्द हवाओं से कांप कांप
जाए गा...