ना पूछिए हम से कि हमारी रज़ा क्या है...आप की इबादत करते है बस यही हमारी ज़िंदगी का नायाब
फलसफ़ा है...कुछ देर रुकिए तो ज़रा और देखिए कि इबादत हमारी क्या रंग लाती है...सदियों की यह
कोशिश है जो अब कही जा कर इबादत के पायदान पे आई है...जरुरी तो नहीं कि इबादत मे हम आप
को ही मांगे...यह वो पायदान है मुहब्बत का जहां रिश्ते मांगे नहीं जाते...वो जब भी क़बूल करे गा हमारी
नायाब इबादत को तो यक़ीनन झोली भी आप के प्यार से भर दे गा.....