आप कहते रहे और हम सुनते रहे,मशवरो का दौर चलता रहा...फूलो की खुशबू से बाग
महकता रहा,पर काॅटो ने दामन तार तार कर दिया...वजूद अपना बना रहे थे हम,किसी
शखसियत की राहो को अमलदराज कर रहे थे हम..काॅच के टुकडो पे चल रहे थे हम,
लहू बहा तो लगा..आज भी परवरदिगार की पनाहो मे बस रहे है हम...
महकता रहा,पर काॅटो ने दामन तार तार कर दिया...वजूद अपना बना रहे थे हम,किसी
शखसियत की राहो को अमलदराज कर रहे थे हम..काॅच के टुकडो पे चल रहे थे हम,
लहू बहा तो लगा..आज भी परवरदिगार की पनाहो मे बस रहे है हम...