जलते है दिए इस उममीद मे,कि रौशन जहाॅ को कर जाए गे....रात गुजर जाती है और
ना जाने कितने पहर....जलाते है खुद को आखिरी कतऱे तक,पर भूल जाते है सब कि
कितना जलाया होगा उस ने,दूसरो को उजाला देने के लिए...यही दुनियाॅ का दसतूर है,
मिटने वाले मिट जाते है,दूसरो को खुशी देने के लिए...और यह दुनियाॅ उस के दरद को
ना जान पाती है...
ना जाने कितने पहर....जलाते है खुद को आखिरी कतऱे तक,पर भूल जाते है सब कि
कितना जलाया होगा उस ने,दूसरो को उजाला देने के लिए...यही दुनियाॅ का दसतूर है,
मिटने वाले मिट जाते है,दूसरो को खुशी देने के लिए...और यह दुनियाॅ उस के दरद को
ना जान पाती है...