Tuesday, 26 January 2021

 आंख से इक मोती निकला..जैसे ओस की बून्द का इक पत्ता गालों पे ढलका...मुस्कुरा दिए कुदरत की 


मेहरबानी पे और हर सांस को उसी की नियामत समझा...खुल के जीने के लिए सिर्फ उसी की मेहर तो 


चाहिए...दुनियां तो आंसू देने मे कसर नहीं छोड़ती...मुस्कुराने की,खुश रहने की कोई खास वजह नहीं 


चाहिए होती...उस का साथ हो तो सकून और ख़ुशी खुद ही मिल जाती है...किसी गरीब को हंसा दिया 


तो दिन का सुंदर आगाज़ हो गया..खिलखिला कर हँसे तो दुनियां को दर्द हो गया...बेपरवाह जी कि उस 


की मेहरबानियों पे दुनियां की कोई नज़र नहीं लगती...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...