Sunday 31 January 2021

 मुन्तज़र तो नहीं तेरे लिए,मगर तुझ से मुख़ातिब तो है...जिस रास्ते पे तू चले,उस पे रुके तेरे रहनुमा तो 


है...भटक ना जाना फिर कभी ग़ल्त गलियों मे,नज़र तुझी पे रखे तेरे राहे-हमसफ़र तो है...चल रहे है 


तेरे साथ इक दरख़्ते-शाखा की तरह,तुझे तो शायद खबर तक नहीं कि तेरे ही शहर के बहुत जयदा 


नज़दीक आ चुके है हम,किसी महकती सुबह की तरह...परवरदिगार को सब पता है..तभी तो मुंतज़र 


 नहीं अब तेरे लिए...पर मुख़ातिब तो है...रहनुमा भी है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...