कुछ सामान पड़ा है तेरा,पास मेरे...
कितनी यादों का भण्डार रखा है दिल के करीब मेरे...
आँखों के हज़ारो सूखे अश्क बंद रखे है,इक डिब्बी मे...
गुलाब की मुरझाई पत्तियां बंद है,मेरे सीने मे...
हज़ारो रुके लफ्ज़ बंद रखे है,इन सूखे होठों पे...
कजरारे नैना पथरा गए है,पलकों के गरीबखाने मे...
कदम बस थम चुके है अब,इन वीरान राहो पर...
गली के उस नुक्कड़ पे,जाते नहीं है हम...
कोई हंस के बुलाए तो कही खो जाते है हम..
उन किताबो पे आज भी लिखा है नाम तेरा...
तुलसी के पौधे पे,जलता है दीपक आज भी तेरे ही नाम का...
बरखा मे उन ओलो को आज भी,अकेले ही इकठ्ठा करते है हम...
और भी ना जाने,कितना भण्डार भरा है तेरी यादों का...
लौट आना और सामान अपना ले जाना...
इन आँखों की जलती हुई आखिरी लो भी देख जाना...