किसी की मासूमियत देख आंख मेरी भर आई....'' भूख से बेहाल हू ''...यह जान आत्मा मेरी दर्द से रो
आई...कचरे मे बीनते-ढूंढते अन्न के टुकड़े,उस गरीब को देख ज़मीर की आवाज़ बिलख आई...भूख
का प्रश्न कितना बेबस और लाचार होता है..इस का उत्तर पूरी तरह कहां पूरा कर पाई...उस का पेट
भरा तो आंखे उस की गहरी चमक से भर आई..दिया दुलार थोड़ा सा तो अपनेपन की महक उस से
आई...भूख का यह सिलसिला,अन्न की गर्मी से ढक जाए..काश,कोई गरीब कभी भूखा ना सोने पाए..