ना साज़ है ना राग है.... ना धरा के कोई भगवान् है..फिर भी हज़ारो दिलों के दिल मे बसे इक मामूली
ख़िताब है...नवाज़ा जिसे खुशियों से महरूम इंसानो ने,उन के लिए छोटी सी इक आवाज़ है...आशा और
निराशा के द्वंद्व मे रुके-फंसे मुसाफिरों की जान है...क्यों कहे,दर्द होते नहीं..कैसे माने,दर्द जाते नहीं...
दिलों को छू कर तो देखिए,इक मुस्कान किसी को दे तो क्या यह नियामत नहीं ? सूखे लब जो देख
के हम को,हंस दे..किसी करिश्मे से कम तो नहीं..हाथ जोड़ के जो इन के कान मे कुछ कह दे,शायद
खुदा की बंदगी से कुछ कम तो नहीं...