बात जब जब सादगी की चली,हम ने राधा का साथ-संग मांग लिया...बात जब आई वर्ण की तो हम ने
कृष्ण का श्यामल रंग खुद मे घोल लिया..काजल-कारी आँखों का बंधन और उस पे अभिमान रौद्र-रूप
का मंथन...यह तो राधा का है जप-तप,टूटा कभी ना यह अलौकिक बंधन..मनुहार था राधा की बोली मे..
भोली आँखों मे झलक शयाम की रहती,तभी तो दुनियाँ आज भी कृष्ण से पहले राधा को जपती..विश्वास
अनोखा..आग मे तप कर सोना जैसे कुंदन होता,राधा का दिल भी अलौकिक प्रेम की आग मे तप कर
रिश्ते को नया नाम दे जाता...तू ही कृष्णा,तू ही राधा..नाम जुदा पर बंधन एक जैसा....