वो क़तरा क़तरा अहसास मुहब्बत का था या मुहब्बत के विष का प्याला...मीरा बन पी गई वो समझ
इसे पाक-मुहब्बत का प्याला...देह बन गई इबादत की मधुशाला...और रूह,वो सदियों के लिए समर्पित
हो गई,समझ इस मुहब्बत को अपनी नसीब- शाला...यह तो उस की पहली और आखिरी मुहब्बत थी...
सदियों से जिसे ढूढ़ रही थी यही थी उस की,अग्नि-परीक्षा...जीत भी तू,हार भी तू...तू ही तू...तू ही तू...
मीरा भी हू..राधा भी और जो धरा मे समा जाए अपने प्यार की परीक्षा के लिए,वो सीता भी हू....