तू मुझे भूल जाए,यह तेरी मरज़ी...तू मुझे ज़ेहन मे रख,यह भी तेरी ही रज़ा...मेरे खतों को जला दे या
मेरी यादों को दफ़न कर दे ..यह भी तेरे ज़मीर का फैसला....क़तरा-क़तरा बहते मेरे अश्कों का हिसाब
लिख या मेरे दर्द पे कोई कहानी अपनी किताब मे लिख...गुजरे वक़्त को सज़दा कर या आने वाली मेरी
मौत का दिन तय कर...अल्लाह ने कब लिखा,मेरी ख्वाहिशों का हिसाब...लिखा तो लिखा बस,मेरे
गुनाहो का हिसाब...वो गुनाह,जो कभी किए ही नहीं,पर सज़ा का खाता, हिस्से हमारे लिखना वो खुदा
भी नहीं भुला...