वो उसे शिद्दत से प्यार करती थी,किसी भी सुख से परे...उस के लिए बेहद बेचैन रहती थी,खुद की
बैचैनी से परे...मुहब्बत के जिस पायदान पे खड़ी थी वो,उस के बाद पायदान की फिर कोई सीमा ना
थी...लेकिन इस सीमा से बाद भी वो,सदियों से बेचैन थी सिर्फ और सिर्फ उसी के लिए...पर बदकिस्मत
था वो,उस मुहब्बत को समझ ही ना पाया..यह तो सिर्फ मेरी है,यह मान के वो उस को अनदेखा करता
आया...किसी भी सुख से परे,उस ने राह दूजी चुन ली...हो गई आसमाँ मे विलीन फिर कभी ना लौटने
के लिए...